जानकारी के लिए आपको बता दें रियल एस्टेट क्षेत्र में एनबीएफसी और मकान के एवज में कर्ज देने वाले वित्तीय संस्थानों का काफी कर्ज चढ़ा हुआ है। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार रीयल्टी क्षेत्र के कुल 4000 अरब रुपए के ऋण में एनबीएफसी और संपत्ति बंधक वित्तीय संस्थानों का कर्ज हिस्सा 2200 अरब रुपए का है। यह वाणिज्यिक बैंकों के 1800 अरब रुपए की तुलना में काफी अधिक है। लोगों में तैयार फ्लैट की घटती डिमांड के चलते रीयल्टी कारोबारियों के दिवालिया होने की आशंकाएं अधिक हैं। इससे निकट भविष्य में उनकी संपत्तियों के अनुत्पादक होने का जोखिम भी बढ़ जाएगा।
इस संबंध में रीयल्टी क्षेत्र में परामर्श देने वाली कंपनी SILA के प्रबंध निदेशक और संस्थापक साहिल वोरा का कहना है कि छोटे और मध्यम रीयल्टी कारोबारियों को ऋण देने वाले एनबीएफसी गंभीरता से वसूली करेंगे। हमारा मानना है कि ये एनबीएफसी का रियल्टी क्षेत्र से जुड़ी गैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) में 2018 में वृद्धि होगी। ये ऋणदाता छोटी रीयल्टी कंपनियों पर इस बात का दबाव भी डाल सकती हैं कि वे बड़ी रीयल्टी कंपनियों में अपना विलय करें।
मोदी सरकार के होम बायर्स को बिल्डर्स से उनके घर दिलाने के लिए बनाए गए कानून को लेकर राज्य सरकारें बिल्कुल भी गंभीर नजर नहीं आ रही है। बता दें दो साल पहले 25 मार्च 2016 को राष्ट्रपति ने रियल एस्टेट रेग्युलेशन एंड डेवलपमेंट एक्ट (रेरा) 2016 को स्वीकृति दी थी, लेकिन अभी तक यह एक्ट राज्यों में लागू नहीं हो पाया है।