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जेपी के घर खरीदारों ने कंपनी की फॉरेसिंक ऑडिट के लिए मांगी बैंकोंं की मदद

locationनई दिल्लीPublished: Feb 23, 2019 04:24:55 pm

Submitted by:

manish ranjan

जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड (जेआईएल) मौजूदा दौर में सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार कारपोरेट इन्साल्वेंसी रिजोल्यूशन प्रोसेस यानी (सीआईआरपी) के दूसरे चरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है।

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जेपी के घर खरीदारों ने कंपनी की फॉरेसिंक ऑडिट के लिए मांगी बैंकोंं की मदद

नई दिल्ली। जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड (जेआईएल) मौजूदा दौर में सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार कारपोरेट इन्साल्वेंसी रिजोल्यूशन प्रोसेस यानी (सीआईआरपी) के दूसरे चरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है। आपको बता दें कि कंपनी के इस प्रक्रिया का असर करीब 30,000 घर खरीददारों पर होगा, क्योकिं कंपनी के इस प्रोजेक्ट में लगभग 30,000 लोगों ने अपना पैसा लगा रखा है।

गौरतलब है कि एक समय ऐसा भी था जब जेआईएल एक सफल प्रोजेक्ट था और कंपनी के पास लैंड बैंक का भी सपोर्ट था, लेकिन अब सवाल ये उठता है कि कंपनी अचानक दिवालिया होने की कगार पर कैसे आ गई? फिलहाल कंपनी के अचानक दिवालिया होने का कोई भी कारण साफ नहीं हो पाया है। वहीं, स्टेकहोल्डर्स और विशेषज्ञों का मानना है कि भारी वसूली और ठीक प्रबंधन न होने के कारण कंपनी दिवालिया होने की कगार पर आ गई है।

आपको बता दें कि CIRP का दूसरा दौर अभी तक सफल रहा है और ठीक चल रहा है। इसके साथ कंपनी के ग्राहक यानी घर खरीदार इंडिपेंनडेट फोरेंसिक ऑडिट की मांग कर रहे हैं, जिससे कंपनी के ग्राहकों को कंपनी के अचानक दिवालिया होने के कारण के बारे में पता चल पाए। साथ ही ग्राहकों को उनका पैसा वापस मिल पाए।

कंपनी के लेनदारों की समिति ने हाल ही में एक बैठक की है, जिस बैठक में कंपनी से लेनदारों ने घर की मांग की है। इसके साथ ही ग्राहकों ने इंडिपेनडेंट फॉरेंसिक ऑडिट की भी मांग की है, लेकिन इस तरह की मांगों से बैंकों के ग्राहकों का भी बैंकों के ऊपर से भरोसा कम होने लगता है।

इसके साथ ही बैंकों की आर्थिक स्थिति पर भी सवाल खड़े हो जाते हैं, क्योंकि इस केस में बैंकों के भी काफी पैसे कंपनी के पास हैं। इस तरह की स्थिति में बैंक भी खुद को सुरक्षित रखना चाहते हैं। इसी के चलते फॉरेंसिक ऑडिट के लिए घर खरीदारों की मांगों का विरोध कर रहे हैं।

आपको बता दें कि कंपनी के इस तरह दिवालिया होने के बाद फॉरेंसिक ऑडिट की आवश्यकता जरूरी होती है क्योंकि इस ऑडिट से कंपनी के अचानक दिवालियापन के कारण का पता लगाया जा सकता है। खासकर जब JIL जैसी कंपनी के साथ ऐसा हुआ हो, क्योंकि हमेशा से ही कंपनी की बाजार में अच्छी स्थिति रही है और उसके प्रमोटर का भी हमेशा अच्छा काम रहा है।

जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (JAL) JIL की प्रवर्तक कंपनी है। इसके साथ ही कंपनी के पास 30 MTPA से अधिक की सीमेंट क्षमता थी। साथ ही सहायक कंपनी जयप्रकाश पावर वेंचर्स लिमिटेड के माध्यम से 1900 मेगावाट जल विद्युत में भी निवेश किया गया था। इसके अलावा, 2012 के ठीक बाद से प्रमोटर भी बैंकों के पूर्व के लोन का भुगतान करने के लिए सक्रिए रूप से काम कर रहे हैं।

आपको बता दें कि JAL ने अपने कार्यकाल में कभी भी कॉर्पोरेट डेट रीस्ट्रक्चरिंग (CDR) का सहारा नहीं लिया और हमेशा बैंकों के प्रति अपने दायित्व के साथ अप-टू-डेट रहा और कंपनी ने 2012 से पहले ही संपत्ति बेचने की पहल की।

आपको बता दें कि कंपनी के 2014 के बाद से शुरू होने वाले विभिन्न वर्षों में बैंकों को दी गई 38,000 करोड़ रुपए से अधिक की कुल संपत्ति, हाइड्रो पावर एसेट्स, कॉरपोरेट ऑफिस और रियल एस्टेट एसेट्स के बारे में हम आपको बताते हैं:
नंबरब्यौराएग्रीमेंट की तारीखकंज्यूमेंशन की तारीखअंतर (समय़)ईवी (करोड़ रुपए में)
1.100% 4.8 एमटीपीए गुजरात सीमेंटसितंबर 2013जून 201410 महीने3800
2.74% 2.1 बोकारो जेपी सीमेंट लिमिटेडमार्च 2014नवंबर 20148 महीने851
3.100% 1.5 एमटीपीए पानीपत सीमेंटसितंबर 2014अप्रैल 20157 महीने360
4विंड पॉवरसितंबर 2015अक्टूबर 20152 महीने184
5.100% 2 हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्टनवंबर 2014अक्टूबर 201511 महीने9700
6.100% 17.2 एमटीपीए सीमेंट प्लांटमार्च 2016जून 201715 महीने16189
7.बल्क लैंड सेल   7204


हमने आपको इस टेबल में कंपनी की कुल संपत्ति और खर्च के बारे में जानकारी दी है। कंपनी की इतनी अच्छी स्थिति होने के बाद भी कंपनी का अचानक दिवालिया हो जाना बहुत ही आश्चर्य की बात है। घर खरीदारों ने आईडीबीआई बैंक, इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी लिमिटेड, भारतीय जीवन बीमा निगम, भारतीय स्टेट बैंक, कॉरपोरेशन बैंक, सिंडिकेट बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, आईसीआईसीआई बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, IFCI लिमिटेड, के वोटों की मांग की है। इसके साथ ही जम्मू और कश्मीर बैंक, एक्सिस बैंक और एसआरईआई इक्विपमेंट फाइनेंस लिमिटेड, प्रयासों को मिलाने और इसकी स्थापना के बाद से जेआईएल के फॉरेंसिक ऑडिट की तलाश कर रहे हैं।

आपको बता दें कि हाल ही में संपन्न हुई JIL के लेनदारों की समिति की बैठक हुई है, जिसमें श्री मनोज गौड़ ने खुद IBC के तहत कंपनी के बारे में जानकारी दी है। साथ ही उन्होंने कहा कि यह आवश्यक है कि इस तरह के विवरणों को जेआईएल की स्थापना के बाद से एक उचित फोरेंसिक ऑडिट के माध्यम से लोगों को दिखाया जाए।

इसके साथ ही घर खरीदारों ने स्वयं स्वतंत्र रूप से उपलब्ध दस्तावेजों और विवरणों के आधार पर JIL की वित्तीय स्थिति को एक समानांतर ऑडिट की शुरुआत की थी और इस ऑडिट के माध्यम से निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि कंपनी में रुपए की समस्या है और प्रबंधन भी ठीक नहीं है, लेकिन घर खरीदारों के कहने पर इस तरह के ऑडिट को कराना खुद को परेशानी में डालना है।

आपको बता दें कि कंपनी में चल रहे विवाद को शांत करने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि इस तरह की परेशानियों को कम करने के लिए ऑडिट किया जाए औऱ उसके बाद उसके आदधार पर बातचीत की जाए। घर खरीदारों ने फ्लैटों की कुल कीमत का 80-90 फीसदी अग्रिम भुगतान के रूप में दे दी है। इसके साथ ही घर खरीदारों ने निर्माण की लागत से कहीं अधिक फ्लैट बनाने के लिए पैसा दिया और अभी तक कंपनी के पास घरों को पूरा करने या बैंकों को भुगतान करने के लिए पैसे नहीं हैं।

आपको बता दें कि इनसॉल्वेंसी पीरियड शुरू होने की तारीख से पहले के दो सालों में कवर किए गए फॉरेंसिक ऑडिट की शुरुआत हुई, जब कंपनी के पास कोई गतिविधि नहीं थी। इस समय कंपनी के ग्राहकों को जेआईएल की स्थापना के बाद से हुए लेनदेनों और बैंकों को अपने अवरोधों को दूर करने और फॉरेंसिक ऑडिट के लिए प्रस्ताव का समर्थन करने की आवश्यकता है, ताकि सच्चाई सामने आए और कंपनी ने जहां भी घर खरीदारों के पैसे को लगाया हो वहां से वह इसको वापस लेकर आए।
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