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संवैधानिक है आईबीसी संशोधन
इसके पहले आईबीसी में संशोधन को करीब 200 से अधिक रियल एस्टेट कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इन रियल एस्टेट कंपनियों का कहना था कि यह संशोधन असंवैधानिक है। जस्टिस आर एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इस संशोधन से घर खरीदारों को एक प्लेटफॉर्म मिल रहा है, जहां वो रियल एस्टेट डेवलपर्स के खिलाफ अपील कर सकते हैं।
आईबीसी संशोधन ही सर्वमान्य
बेंच ने कहा कि रियल एस्टेट सेक्टर को रेग्युलेट करने के लिए रेरा और आईबीसी संशोधन को एक साथ काम करना होगा। रेरा किसी अधिनियम के अपमान की स्थिति में नहीं। कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि यदि रेरा और आईबीसी के बीच में किसी टकराव की बात आती है तो आईबीसी संशोधन ही सर्वमान्य होगा। यह ग्राहकों पर निर्भर करता है कि वे कि अधिनियम के तहत सुनवाई चाहते हैं। इसमें कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, आईबीसी या फिर रेरा भी हो सकता है।
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2018 में आईबीसी कानूनी पारित हुआ था
आईबीसी में हुए बदलाव पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से होम बायर्स को भी लोन देने वाले बैंकों के साथ फाइनैंशल क्रेडिटर का दर्जा मिल गया है। इससे इन्सॉल्वेंसी से जुड़ी कार्यवाही में होम बायर्स की सहमति की जरूरत होगी। बता दें कि साल 2018 में संसद ने आईबीसी कानून पारित किया था, जिसमें घर खरीदारों और निवेशकों को दिवालिया घोषित कंपनी का कर्जदाता माना गया था।