क्या लिव इन रिलेशनशिप की ओर बढ़ रहा है हमारा भारतीय समाज । क्या यही है रिलेशनशीप का न्यू नॉर्मल । इस आर्टिकल के अंदर आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे । साथ ही बात करेंगे रिलेशनशिप में बरतने वाली सावधानियों के बारे में।
नई दिल्ली। भारतीय समाज धीरे धीरे हर क्षेत्र में में आगे बढ़ रहा है। हमारे समाज पर वेस्टर्न सोसाइटी का प्रभाव भी काफी तेजी से पड़ता है। लिव इन रिलेशनशिप वेस्टर्न सोसाइटी का हिस्सा था परंतु अब यह भारतीय समाज का हिस्सा है । नए दौर की नई पीढ़ी अपनी जिंदगी को अपने हिसाब से जीना चाहती है। रिश्तो को नए तौर-तरीके से निभाना चाहती है। लिव इन रिलेशनशिप भी रिश्ते निभाने का एक नया तरीका ही है। भारतीय समाज परंपरागत तरीके से हुए विवाह पर ही विश्वास करता है। परंतु वक्त के साथ समाज में चीजें बदलती हैं। हर रिश्ते को नया नाम और नया संबोधन मिलता है। एक नजरिए से देखा जाए तो लिव इन रिलेशनशिप आज की जनरेशन के लिए रिश्ते का एक नया मोड़ या नाम है।
किन बातों का रखें लिव इन रिलेशनशिप में खयाल लिव इन रिलेशनशिप में आपको अपनी निजी जिंदगी को बदलने की जरूरत नहीं होती। दोनों पार्टनर हर बंधन से आजाद होकर इस रिलेशनशिप को जीते हैं। साथ ही अब इस रिलेशनशिप पर कानून की मुहर भी लग गई है ।तो यह लीगल है। परंतु इस रिश्ते में भी आपको अपने हक और अधिकार के बारे में सारी बातें पता होनी चाहिए। ताकि आगे चलकर आपको किसी भी कठिनाई का सामना ना करना पड़े। चुकी यह रिश्ता दो खुले विचारधारा वाले लोगों का होता है। ऐसे में अपको अपने पार्टनर के साथ एग्रीमेंट करना चाहिए। आपको साथ निभाने के लिए ट्रेनिंग लेनी चाहिए। अपने सभी अधिकारों के बारे में पता होना चाहिए। आपका पार्टनर यदि आपकी मज़बूरी या आपकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करता है तो उसे रोकने की आपमें हिम्मत होनी चाहिए। अपने पार्टनर पर पूरी तरह से भरोसा होना चाहिए साथ ही इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि कोई भी निर्णय लेने से पहले आपको उस निर्णय को जीवन भर निभाना पड़ेगा।
लिव इन रिलेशनशिप पर क्या है सुप्रीम कोर्ट के विचार सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के.एस. राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली टीम ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए लिव-इन संबंधों को वैवाहिक संबंधों की प्रकृति के दायरे में लाने के लिए दिशानिर्देश तय किया है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार किसी भी कारणवश जब लिव-इन संबंध विवाहित संबंधों में परिवर्तित नहीं हो पता है तो इसका सीधा खामियाजा महिला और जन्में या अजन्में बच्चे पर ही पड़ता है । इसलिए भले ही समाज इस संबंध को स्वीकार ना करे लेकिन लिव-इन संबंध पूरी तरह व्यक्तिगत मामला है। और कोर्ट के हिसाब से अब यह लीगल भी है।