हार्ट केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, ”निराशाजनक विकलांगता और मृत्युदर के मामले में अवसाद एक बड़ी जन स्वास्थ्य समस्या है। सभी निराश मरीजों से विशेष रूप से आत्मघाती विचारों के बारे में पूछताछ की जानी चाहिए। आत्मघाती विचार एक मेडिकल इमर्जेंसी है। इसके रिस्क फैक्टर्स में मनोवैज्ञानिक विकार, शारीरिक रोग, आत्मघाती प्रयासों का पूर्व इतिहास या आत्महत्या को लेकर पारिवारिक इतिहास शामिल हैं।”
उन्होंने कहा कि उम्र में वृद्धि के साथ आत्महत्या का जोखिम बढ़ता है। हालांकि, छोटे बच्चे और किशोरों में बड़ों के मुकाबले आत्महत्या की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं के मन में आत्महत्या करने के विचार अधिक बार आते हैं। लेकिन पुरुष इसमें तीन गुना अधिक सफल रहते हैं। आत्मघात की दर ऐसे लोगों में अधिक पाई जाती है जो अविवाहित हैं, विधवा या विधुर हैं, अलग रहते हैं, तलाकशुदा हैं और शादीशुदा होकर भी जिनके बच्चे नहीं हैं। अकेले रहने से आत्महत्या का खतरा बढ़ जाता है।
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि जिन लोगों में सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम प्रभावी है, उनमें घबराहट व तनाव की भावना अधिक रहती है। जब कोई व्यक्ति उदास होता है, तो उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के बीच एक डिस्कनेक्ट होता है।
उन्होंने कहा, ”क्वांटम भौतिकी के अनुसार, अवसाद और चिंता का तंत्र पार्टिकल डुएलिटी के बीच असंतुलन से प्रभावित हो सकता है। इसमें संतुलन से अवसाद व अन्य मानसिक विकारों के इलाज में मदद मिल सकती है। पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम शरीर को तनाव से मुक्त होने में मदद करके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे रक्तचाप बढ़ता है, आंखों की पुतलियां फैलती हैं और मन विचलित होता है। साथ ही अन्य शरीर प्रक्रियाओं से हटकर ऊर्जा इससे लडऩे में लग जाती है।”
जीवनशैली को संतुलित रखने के सुझाव