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बच्चों को ना दें सजा, सिखाएं अनुशासन

Published: Mar 20, 2015 12:27:00 pm

बच्चों को अपने
समकक्ष और साथी समझें और उसी के मुताबिक व्यवहार करें

बच्चों के पालन-पोषण के दौरान अनुशासन बहुत ही जरूरी तत्व है। यह बच्चों को प्रतिकूल व्यवहार करने से रोककर उन्हें सकारात्मक और बेहतर व्यक्तित्व का मालिक बनाता है। अनुशासन के जरिए बच्चों को जिम्मेदार, ईमानदार बनाया जा सकता है। आप भी अनुशासन का मह त्व जानती हैं और आपके बच्चे गलत व्यवहार न करें, अनुशासन में रहें , इसके लिए अनेक जतन करती हैं। इस चक्कर में आप उन्हें कई बार सजा भी दे डालती हैं, क्योंकि सजा भी आपको अनुशासन का ही एक हिस्सा नजर आती है। आपको सजा और अनुशासन में अंतर समझना ही होगा, ताकि आपके बच्चे वैसा बन सकें, जैसा आप चाहती हैं।

आपमें और बच्चे में कोई समानता नहीं है
याद रखें, आप और बच्चे “मिसमैच्ड” हैं। आप दोनों समान नहीं हैं। बच्चे न तो आकार में और न ही ताकत में बड़ों के समान होते हैं। उनके पास कम जानकारी होती है और न ही जिंदगी का उतना अनुभव होता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि बड़े गुस्से में आकर बच्चों को सजा देते हैं। ऎसा करके वे एक तरह से बच्चों को यही सिखाते हैं कि जो कमजोर हैं, छोटे हैं, उन्हें कम आदर देना चाहिए।

सजा प्रतिक्रिया की अति है
बच्चों को सजा देने का खयाल आपको उस वक्त आता है, जब आप उनके व्यवहार से आहत हो जाती हैं और सोचती हैं कि उन्हें भी वैसा ही दर्द मिलना चाहिए। यह किसी भी परिस्थिति की अतिप्रतिक्रिया है। आप उन्हें बहुत बुरी तरह डांटती हैं या तक कि हाथ उठाने से भी नहीं चूकतीं। इसलिए अगली बार आपको बच्चों की किसी अनुशासनहीनता पर गुस्सा आए तो गहरी सांस लें और पूरी परिस्थिति पर फिर से विचार करें।

सजा देने से कोई सबक नहीं मिलता

जैसे ही आपके मन में बच्चों को सजा देने का खयाल आता है, आपका दिमाग चीजों को सही तरीके से सोचना बंद कर देता है और न ही आप निष्पक्ष रह पाती हैं। ये सब चीजें बच्चे को गलत से सही सीखने में क ोई मदद नहीं करतीं। चिल्ला कर और बच्चे की बांह मरोड़ कर आप उसे क्या सिखा पाएंगी? चाहे कुछ भी हो, आप बच्चे के साथ आदर से व्यवहार कीजिए, उससे बात कीजिए और उससे विमर्श कीजिए कि क्यों उसने गलत व्यवहार किया और फिर उसे सुधरने का मौका भी दीजिए। यकीनन आपको बेहतर नतीजे मिलेंगे।

रिश्ते पर पड़ती है डर की छाया

सजा की वजह से आपके और आपके बच्चे के बीच में डर की दीवार खड़ी हो जाती है। लगातार सजा मिलने की वजह से बच्चा सहमने लगता है। यदि आप बहुत ही गुस्से वाली हैं और ऎसी हैं कि आपके स्वभाव के बारे में पूर्वानुमान लगाना मुश्किल होता है तो स्थिति और खराब हो सकती है। बच्चे यही सोचकर तनाव में आ जाते हैं कि न जाने उनकी कौनसी गलती की उन्हें क्या सजा मिलेगी। यह डर और तनाव बच्चे में बड़े होने तक बना रह सकता है।

बच्चों को भी चाहिए बड़ों जैसा आदर
बच्चे भी उसी आदर के हकदार हैं, जैसे आदर के बड़े। आप रोजाना बहुत से लोगों को बहुत-सी हिदायतें देती होंगी। क्या वे सारी मान ली जाती हैं? नहीं न, तो फिर फिर बच्चों को साधारण-सी हिदायतें न मानने पर सजा क्यों? उन्हें भी अपने समकक्ष और साथी समझें और उसी के मुताबिक व्यवहार करें।
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