स्थिति अब बदल रही है शोधकर्ताओं को जो नतीजे मिले, उनके अनुसार ज्यादातर लोग अपने स्थानीय समुदाय से ही अपना जीवनसाथी चुनते हैं, जो उन्हीं के कुल का होता है लेकिन अध्ययन में यह भी कहा गया है कि अब इस चलन में बदलाव भी देखा जा रहा है। हालांकि यह अभी स्पष्ट नहीं हुआ है कि समान जीवनसाथी चुनने की प्रथा कमजोर क्यों पड़ी है? यहां इंटरनेट का बढ़ता प्रयोग, वैश्वीकरण और दूसरे कुल के लोगों से बढ़ता मेलमिलाप कुछ हद तक इसकी वजह हो सकते हैं।
जोडिय़ां तो फिर भी एक सी दिखेंगी कुल के अंदर ही जीवनसाथी की तलाश की पुरानी प्रथा में आ रहे इस बदलाव के मायने यह नहीं हैं कि जोडिय़ों कि शक्ल मिलना बंद हो जाएगी। एक अन्य अध्ययन में जब नवविवाहित जोड़ों की फोटो की तुलना उनकी 25 वर्ष बाद की फोटो से की गई तो एक और दिलचस्प तथ्य सामने आया कि समय गुजरने के साथ पति-पत्नी एक जैसे दिखाई देने लगते हैं। वैज्ञानिकों ने इसकी वजह सुखी जीवन व्यतीत करना और साथ हंसना-रोना बताई। मसलन अगर आपका जीवनसाथी अक्सर हंसता है और आपको भी हंसाता है तो आप दोनों की मुस्कान एक जैसी प्रतीत होनी शुरू हो जाती है। यकीनन यह एक अच्छा संकेत है और इस बात को पुख्ता करता है कि जो कपल साथ हंसते हैं, वे हमेशा साथ रहते हैं।
क्या है वैज्ञानिक पहलू पेन्सेल्विनिया यूनिवर्सिटी, बोस्टन यूनिवर्सिटी और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की ओर से की गई एक रिसर्च में सामने आया है कि विवाहित जोड़ों की शक्लें इसलिए मिलती हैं क्योंकि अपने ही कुल में रिश्ता करना मानवीय स्वभाव है। इस शोध में अलग-अलग जेनेटिक पृष्ठभूमि और वंशावली से ताल्लुक रखने वाले 800 जोड़ों को शामिल कर उनके जेनोमिक डाटा का अध्ययन किया गया। अध्ययन में यह दिलचस्प तथ्य सामने आया कि उम्मीद से कई गुना ज्यादा जोडिय़ों की पीढिय़ां जेनेटिक रूप से समान हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि जोड़ों के पूर्वज एक ही हैं।