scriptकर्मकांड नहीं, कर्मों से होता है सौभाग्य-दुर्भाग्य का फैसला | A man's Karma not rituals decides his destiny in next birth | Patrika News

कर्मकांड नहीं, कर्मों से होता है सौभाग्य-दुर्भाग्य का फैसला

Published: Dec 16, 2015 03:28:00 pm

सृष्टि में ऐसा कोई भी पुरोहित या कर्मकांड नहीं है, जो व्यक्ति के कर्मफलों में तिल भर का भी हेरफेर कर सके, व्यक्ति अपने कर्मों के हिसाब से ही स्वर्ग या नरक में जाता है

buddha meditation

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सदियों पहले किसी पंथ के पुरोहित नागरिकों के मृत संबंधी की आत्मा को स्वर्ग भेजने के लिए एक कर्मकांड करते थे और उसके लिए बड़ी दक्षिणा मांगते थे। उस कर्मकांड के दौरान वे मंत्रोच्चार करते समय मिट्टी के एक छोटे कलश में पत्थर भरकर उसे एक छोटी-सी हथौड़ी से ठोकते थे।

यदि वह पात्र टूट जाता और पत्थर बिखर जाते तो वे कहते कि मृत व्यक्ति की आत्मा सीधे स्वर्ग को प्रस्थान कर गई है। अधिकतर मामलों में मिट्टी के साधारण पात्र लोहे की हथौड़ी की हल्की चोट भी नहीं सह पाते थे और पुरोहितों को वांछनीय दक्षिणा मिल जाती थी।

अपने पिता की मृत्यु से दुखी एक युवक बुद्ध के पास इस आशा से गया कि बुद्ध की शिक्षाएं और धर्म अधिक गहन हैं और वे उसके पिता की आत्मा को मुक्त कराने के लिए कोई महत्वपूर्ण क्रिया अवश्य करेंगे। बुद्ध ने युवक की बात सुनकर उससे दो अस्थि कलश लाने और उनमें से एक में घी और दूसरे में पत्थर भरकर लाने के लिए कहा।

यह सुनकर युवक बहुत प्रसन्न हो गया। उसे लगा कि बुद्ध कोई नई और शक्तिशाली क्रिया करके दिखाएंगे। वह मिट्टी के एक कलश में घी और दूसरे में पत्थर भरकर ले आया। बुद्ध ने उससे कहा कि वह दोनों कलश को सावधानी से नदी में इस प्रकार रख दे कि वे पानी में मुहाने तक डूब जाएं, फिर बुद्ध ने युवक से कहा कि वह पुरोहितों के मंत्र पढ़ते हुए दोनों कलश को पानी के भीतर हथौड़ी से ठोक दे और वापस आकर सारा वृत्तांत सुनाए।

उस क्रिया करने के बाद युवक अत्यंत उत्साह में था। उसे लग रहा था कि उसने पुरानी क्रिया से भी अधिक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली क्रिया स्वयं की है। बुद्ध के पास लौटकर उसने सारा विवरण कह सुनाया। ‘दोनों कलश को पानी के भीतर ठोकने पर वे टूट गए। उनके भीतर स्थित पत्थर तो पानी में डूब गए, लेकिन घी ऊपर आ गया और नदी में दूर तक बह गया।’

बुद्ध ने कहा, ‘अब तुम जाकर अपने पुरोहितों से कहो कि वे प्रार्थना करें कि पत्थर पानी के ऊपर आकर तैरने लगे और घी पानी के भीतर डूब जाए।’

यह सुनकर युवक चकित रह गया और बुद्ध से बोला, ‘आप कैसी बात करते हैं! पुरोहित कितनी ही प्रार्थना क्यों न कर लें, पर पत्थर पानी पर कभी नहीं तैरेंगे और घी पानी में कभी नहीं डूबेगा!’

बुद्ध ने कहा, ‘तुमने सही कहा। तुम्हारे पिता के साथ भी ऐसा ही होगा। यदि उन्होंने अपने जीवन में शुभ और सत्कर्म किए होंगे तो उनकी आत्मा स्वर्ग को प्राप्त होगी। यदि उन्होंने त्याज्य और स्वार्थपूर्ण कर्म किए होंगे तो उनकी आत्मा नर्क को जाएगी। सृष्टि में ऐसा कोई भी पुरोहित या कर्मकांड नहीं है, जो तुम्हारे पिता के कर्मफलों में तिल भर का भी हेरफेर कर सके।’


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