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जिंदा है भगवान शिव का ये अवतार, इस शिव मंदिर में रोज करता है पूजा

Published: Mar 03, 2016 04:10:00 pm

द्वापरयुग में जन्मे अश्वत्थामा की गिनती आठ चिरंजीवियों में की जाती है, महाभारत के अनुसार वह काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे

How to worship Shiv linga

How to worship Shiv linga

द्वापरयुग में जन्मे अश्वत्थामा की गिनती आठ चिरंजीवियों में की जाती है। वे गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र तथा कुरु वंश के राजगुरु कृपाचार्य के भांजे थे। महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे। अश्वत्थामा अत्यंत शूरवीर, प्रचंड क्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। उत्तरा के गर्भस्थ शिशु की ब्रहमास्त्र से हत्या के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने ही अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था।

इसलिए रखा गया था ‘अश्वत्थामा’ नाम
महाभारत के आदिपर्व के अनुसार, द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा इसलिए कहलाए क्योंकि जन्म के समय अश्वत्थामा उच्चै:श्रवा घोड़े के समान इतनी जोर से चिल्लाए थे कि तीनों लोक कांप गए थे। अत: आकाशवाणी ने इसका नाम अश्वत्थामा रखा।

अलभद् गौतमी पुत्रमश्वत्थामानमेव च। स जातमात्रौ व्यनदद् यथैवोच्चै:श्रवाहय:॥ – महाभारत आदिपर्व 129/47

अर्थात गौतमी कृपी (शरद्वान की पुत्री) ने द्रोण से अश्वत्थामा नामक पुत्र प्राप्त किया। उस बालक ने जन्म लेते ही उच्चै:श्रवा घोड़े के समान शब्द किया।

किया था पूरी पांडव सेना का विनाश
अश्वत्थामा की गिनती उस युग के श्रेष्ठ योद्धाओं में होती थी। अश्वत्थामा भी अपने पिता द्रोणाचार्य की भांति शास्त्र व शस्त्र विद्या में निपुण थे। पिता-पुत्र दोनों ने ही महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों की सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया था। समस्त कौरव सेना तथा स्वयं दुर्योधन के बुरी तरह घायल होने के बाद अश्वत्थामा ने भगवान शिव की आराधना कर दिव्य तलवार प्राप्त की थी तथा उससे समस्त पाडंव तथा भगवान श्रीकृष्ण को छोड़कर शेष समस्त पांडव सेना का विनाश कर दिया था।

पिता की मृत्यु से विचलित होकर गर्भस्थ शिशु पर चलाया था ब्रह्मास्त्र
अपने पिता द्रोणाचार्य की धोखे से की गई हत्या ने अश्वत्थामा को विचलित कर दिया। महाभारत के पश्चात जब अश्वत्थामा ने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए पांडव पुत्रों का वध कर दिया तथा पांडव वंश के समूल नाश के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, तब भगवान श्री कृष्ण ने परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरुप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकालकर उन्हें तेजहीन कर दिया और युगों-युगों तक भटकते रहने का शाप दिया था।

शाप से मुक्ति पाने के लिए अश्वत्थामा करते हैं शिव पूजा
किवंदतियों के अनुसार असीरगढ़ किले में स्थित तालाब में स्नान करके अश्वत्थामा शिव मंदिर में पूजा-अर्चना करने जाते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वे उतावली नदी में स्नान करके पूजा के लिए यहां आते हैं। आश्चर्य कि बात यह है कि पहाड़ की चोटी पर बने किले में स्थित यह तालाब बुरहानपुर की तपती गरमी में भी कभी सूखता नहीं। तालाब के थोड़ा आगे गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है। मंदिर चारो तरफ से खाइयों से घिरा है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इन्हीं खाइयों में से किसी एक में गुप्त रास्ता बना हुआ है, जो खांडव वन ( मध्यप्रदेश के खंडवा जिला) से होता हुआ सीधे इस मंदिर में निकलता है।
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