आइये जानते हैं कि चाणक्य नीति के अनुसार, कब अपने अपनों के ही दुश्मन बन जाते हैं… ऐसी स्त्री होती है शत्रु के समान यही स्त्री या पत्नी रूपवती होती है तो वह अपनों के लिए शत्रु के समान है। यदी पिता या
पति कमजोर हो और दुश्मनों से उसकी रक्षा नहीं कर सकता है तो ऐसी स्त्री या पत्नी अपने पिता या पति के लिए शत्रु के समान ही है।
इस तरह के संतान शत्रु के समान चाणक्य के अनुसार, अगर किसी का पुत्र मूर्ख है, तो वह अपने माता पिता के लिए शत्रु का समान ही होता है। ऐसी संतना जीवन भर अपने परिवार वालों को दुख देती है।
ऐसी मां शत्रु के समान अगर कोई मां अपनी संतानों के बीच भेदभाव करती है, तो वह भी शत्रु के समान होती है। इसके अलावा जो मां अपनी संतान का सही तरीके से पालन नहीं करती है और उसका अपने पति के अलावा किसी और पुरूष से संबंध हो तो वह परिवार और संतान के लिए घातक होती है।
ऐसे पिता हैं शत्रु के समान चाणक्य के अनुसार, जो पिता कर्ज लेकर अपने संतान का पालन-पोषण करता है, लेकिन उसे चुकाने में असमर्थ होता है, वह अपनी संतान के लिए दुश्मन होता है। कर्ज लेकर जीवन का गुजारा करने वाला पिता शत्रु के समान ही होता है।