धर्म और अध्यात्म

विचार मंथन : राष्ट्रधर्म का पालन प्रत्येक राष्ट्रवासी के लिए सर्वोपरि है

विचार मंथन : राष्ट्रधर्म का पालन प्रत्येक राष्ट्रवासी के लिए सर्वोपरि है

Feb 12, 2020 / 05:28 pm

Shyam

विचार मंथन : राष्ट्रधर्म का पालन प्रत्येक राष्ट्रवासी के लिए सर्वोपरि है

राष्ट्र हममें से हर एक के सम्मिलित अस्तित्त्व का नाम है। इसमें जो कुछ आज हम हैं, कल थे और आने वाले कल में होंगे, सभी कुछ शामिल है। हम और हममे से हर एक के हमारेपन की सीमाएं चाहे जितनी भी विस्तृत क्यों न हों? राष्ट्र की व्यापकता में स्वयं ही समा जाती हैं। इसकी असीम व्यापकता में देश की धरती, गगन, नदियाँ, पर्वत, झर-झर कर बहते निर्झर, विशालतम सागर और लघुतम सरोवर, सघन वन, सुरभित उद्यान, इनमें विचरण करने वाले पशु, आकाश विहार करने वाले पक्षी सभी तरह के वृक्ष व वनस्पतियां समाहित हैं। प्रान्त, शहर, जातियां, बोलियां, भाषाएं यहां तक कि रीति, रिवाज, धर्म, मजहब, आस्थाएँ, परम्पराएं, राष्ट्र के ही अंग अवयव हैं।

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राष्ट्र से बड़ा अन्य कुछ भी नहीं है, भारतवासियों की एक ही पहचान है भारत देश, भारत मातरम्। हममें से हर एक का एक ही परिचय है- राष्ट्र ध्वज, अपना प्यारा तिरंगा। इस तिरंगे की शान में ही अपनी शान है। इसके गुणगान में ही अपने गुणों का गान है। हमारी अपनी निजी मान्यताएं, आस्थाएं, परम्पराएं, यहां तक कि धर्म, मजहब की बातें वहीं तक सार्थक और औचित्यपूर्ण हैं, जहाँ तक कि इनसे राष्ट्रीय भावनाएं पोषित होती हैं। जहां तक कि ये राष्ट्र धर्म का पालन करने में, राष्ट्र के उत्थान में सहायक हैं। राष्ट्र की अखण्डता, एकजुटता और स्वाभिमान के लिए अपनी निजता को न्यौछावर कर देना प्रत्येक राष्ट्रवासी का कर्त्तव्य है।

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राष्ट्रधर्म का पालन प्रत्येक राष्ट्रवासी के लिए सर्वोपरि है। यह हिन्दू के लिए भी उतना ही अनिवार्य है जितना कि सिख, मुस्लिम या ईसाई के लिए। यह गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब या तमिल, तैलंगाना की सीमाओं से कहीं अधिक है। इसका क्षेत्र तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक सर्वत्र व्याप्त है। राष्ट्र धर्म के पालन का अर्थ है, राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति, वस्तु व परिस्थिति के लिए संवेदनशील होना, सजग होना, कर्त्तव्यनिष्ठ होना, राष्ट्रीय हितों के लिए, सुरक्षा व स्वाभिमान के लिए अपनी निजता, अपने सर्वस्व का सतत् बलिदान करते रहना।

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