1. जीव दया ही परम धर्म है|
2. अच्छे लोग दूसरों के लिए जीते हैं जबकि दुष्ट लोग दूसरों पर जीते हैं
3. नम्रता से देवता भी मनुष्य के वश में हो जाते हैं
4. जिस तरह कीड़ा कपड़ों को कुतर देता है, उसी तरह ईर्ष्या मनुष्य को
5. श्रम शब्द में ही श्रम और संयम की प्रतिष्ठा है
6. भूत से प्रेरणा लेकर वर्तमान में भविष्य का चिंतन करना चाहिए
7. श्रद्धा के बिना पूजा-पाठ व्यर्थ है
8. हमें सिखाती है जिनवाणी, कोई कष्ट न पावे प्राणी
9. क्रोध मूर्खता से शुरू होता है और पश्चाताप पर खत्म होता है
10. जीवन को भोग की नहीं, योग की तपोभूमि बनाएं
11. जिन्हें सुंदर वार्तालाप करना नहीं आता, वही सबसे अधिक बोलते हैं
12. दूसरों के हित के लिए अपने सुख का त्याग करना ही सच्ची सेवा है
13. जो नमता है, वह परमात्मा को जमता है
14. जिसकी दृष्टि सम्यक हो, वह कभी कर्तव्य विमुख नहीं होता है
15. सम्यकत्व से रिक्त व्यक्ति चलता-फिरता शव है
16. प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित करती है
17. ईर्ष्या खाती है अंतरात्मा को, लालच खाता है ईमान को, क्रोध खाता है अक्ल को
18. धर्म पंथ नहीं पथ देता है
19. चार पर विजय प्राप्त करो- 1. इंद्रियों पर 2. मन पर 3. वाणी पर 4. शरीर पर
20. शुभ अशुभ कर्मों का फल अवश्य मिलता है
21. धर्म का मूल मंत्र है ‘झूठ से बचो’
22. यश त्याग से मिलता है, धोखाधड़ी से नहीं
23. यदि कल्पना का सदुपयोग करें तो वह परम हितैषिणी हो जाती है
24. झूठ से मेल करने से जीवन की सम्पदा नष्ट हो जाती है
25. डरना और डराना दोनों पाप है
26. पहले मानव बनें, मोक्ष का द्वार स्वतः खुल जाएगा
27. चरित्रहीन ज्ञान जीवन का बोझ है
28. सहिष्णुता कायरता का चिह्न नहीं है, वीरता का फल है
29. जिसने आत्मा को जान लिया, उसने लोक को पहचान लिया
30. मनुष्य स्वयं को शरीर से भिन्न नहीं समझता, इसलिए मृत्यु से भयभीत रहता है ।
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