script

विचार मंथन : रोग के सही निदान के लिए रोग का पारदर्शी ज्ञान होना चाहिए- ब्रह्मऋषि विश्वामित्र

locationभोपालPublished: May 31, 2019 05:41:44 pm

Submitted by:

Shyam Shyam Kishor

सफल चिकित्सा के लिए जीवन का समग्र बोध आवश्यक है – ब्रह्मऋषि विश्वामित्र

daily thought

विचार मंथन : रोग के सही निदान के लिए रोग का पारदर्शी ज्ञान होना चाहिए- ब्रह्मऋषि विश्वामित्र

आध्यात्मिक चिकित्सा

बोध, निदान एवं विज्ञान का पूर्ण तंत्र है। इसमें जीवन की दृश्य- अदृश्य संरचना का सम्पूर्ण बोध है। इसी के साथ यहां जीवन के दैहिक- दैविक एवं आध्यात्मिक रोगों के निदान की सूक्ष्म विधियों का समग्र ज्ञान है। इतना ही नहीं इसमें इन सभी रोगों के सार्थक समाधान का प्रायोगिक विज्ञान भी समाविष्ट है, जो मानव जीवन की सम्पूर्ण चिकित्सा के ऋषि संकल्प को दुहराता है।

 

यह वही महासंकल्प है, जो ऋग्वेद के दशम मण्डल के रोग निवारण सूक्त के पंचम मंत्र के ऋषि विश्वामित्र की अन्तर्चेतना में गूंजा था। नवयुग की नवीन सृष्टि करने वाले ब्रह्मऋषि विश्वामित्र उन क्षणों में चिन्तन में निमग्र थे। तभी उन्हें एक करूण, आर्त स्वर सुनाई दिया। यह विकल स्वर एक दुःखी नारी का था, जिसे उनका शिष्य जाबालि लिए आ रहा था। इस युवती नारी को रोगों ने असमय वृद्ध बना दिया था।

 

कंगाल होने से बचना है तो शनि जयंती पर गलती से भी न करें ऐसी गलती

 

पास आते ही ब्रह्मज्ञानी महर्षि ने उसकी व्यथा के सारे सूत्र जान लिए और जाबालि को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा- वत्स! चिकित्सा की सारी प्रचलित विधियां एवं औषधियां इस पर नाकाम हो गयी हैं, यही कहना चाहते हो न, हां आचार्यवर…। वह अभी आगे कुछ कह पाता तभी ऋषि बोले- वत्स! अभी एक चिकित्सा विधि बाकी है- और वह है आध्यात्मिक चिकित्सा। तुम्हारें सम्मुख मैं आज इसका प्रयोग करूंगा।

 

शिष्य जाबालि अपने आचार्य की अनन्त आध्यात्मिक शक्तियों से परिचित थे, सो वे शान्त रहे। फिर भी उनमें जिज्ञासा तो थी ही। जिसका समाधान करते हुए अन्तर्यामी ब्रह्मऋषि बोले- पुत्र जाबालि, सफल चिकित्सा के लिए जीवन का समग्र बोध आवश्यक है और जीवन मात्र देह नहीं है, इसमें इन्द्रिय, प्राण, मन, चित्त, बुद्धि, अहं एवं अन्तरात्मा की अन्य अदृश्य कड़ियां भी है। रोग के सही निदान के लिए इनका पारदर्शी ज्ञान होना चाहिए। तभी समाधान का विज्ञान कारगर होता है। यह कहते हुए महर्षि ने उस पीड़ित नारी को सामने बिठाकर उसे अपने महातप के एक अंश का अनुदान देने का संकल्प करते हुए कहा-

 

पितृदोष से मुक्ति के लिए जरूर करें ये महाउपाय



आ त्वागमं शंतातिभिरथो अरिष्टातातिभिः।
दक्षं त उग्रमाभारिषं परा यक्ष्मं सुवामि ते॥

अर्थात्- ‘आपके पास शान्ति फैलाने वाले तथा अविनाशी साधनों के साथ आया हूं। तेरे लिए प्रचण्ड बल भर देता हूं। तेरे रोग को दूर भगा देता हूं।’ महर्षि के इस संकल्प ने उस पीड़ित नारी को स्वास्थ्य का वरदान देने के साथ आध्यात्मिक चिकित्सा की पुण्य परम्परा का प्रारम्भ भी किया।

*********

ट्रेंडिंग वीडियो