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विचार मंथन : मानव जीवन के सदुपयोग की सर्वोत्तम नीति है, आत्मोन्नति की सर्वोत्तम साधना है – डॉ. प्रणव पंड्या

locationभोपालPublished: Oct 25, 2018 05:00:08 pm

Submitted by:

Shyam

मानव जीवन के सदुपयोग की सर्वोत्तम नीति है, आत्मोन्नति की सर्वोत्तम साधना है – डॉ. प्रणव पंड्या

Daily Thought Vichar Manthan

विचार मंथन : मानव जीवन के सदुपयोग की सर्वोत्तम नीति है, आत्मोन्नति की सर्वोत्तम साधना है – डॉ. प्रणव पंड्या

त्यागमय जीवन-
महात्मा ईसा ने अपने शिष्यों से कहा था कि-“जो बहुत जोड़ता है वह बहुत खोयेगा । जो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना चाहता है वह सब कुछ छोड़कर मेरे साथ चले । ” भगवान बुद्ध ने राज सिंहासन छोड़ा था पर वे किसी प्रकार घाटे में नहीं रहे । राजा विश्वामित्र से महर्षि विश्वामित्र का पद ऊंचा था, बैरिस्टर गाँधी से महात्मा गाँधी कुछ बुरे नहीं रहे ।


अकबर का दरबारी प्रताप सिंह बनने की अपेक्षा जंगलों में भटकने वाला राणाप्रताप क्या मूर्ख कहलाया ? भामा शाह अपना सब कुछ लुटा गये, क्या वे घाटे में रहे ? सिकन्दर अपनी दौलत को देख देखकर मरते वक्त बुरी तरह फूट फूट कर रोता था, मरने के बाद उसने अपने दोनों हाथ अर्थी से बाहर निकले रहने देने का आदेश किया था ताकि लोग यह जान सकें कि विपुल सम्पत्ति जमा करने वाला सिकन्दर अपने साथ कुछ भी न ले जा सका था उसके दोनों हाथ बिल्कुल खाली थे ।

 

त्याग का अर्थ जिम्मेदारियों का कर्तव्य का त्याग नहीं है जैसा कि आजकल कितने ही नासमझ लोग अपने कठोर कर्तव्यों से विमुख होकर कायरतापूर्वक घर छोड़कर भाग खड़े होते हैं और विचित्र वेष बनाकर आलस्य में समय बिताते हुए दूसरों पर भार बनते हैं । त्याग का वास्तविक अर्थ है- अपनी दुर्भावना दुर्वासना स्वार्थपरता, ममता एवं लोभवृत्ति का त्याग ।


वेद भगवान ने कहा – “सौ हाथों से कमा, हजार हाथों से दान कर” हम तत्परतापूर्वक अपने श्रम का शक्ति का योग्यता का समय का पूरा पूरा उपयोग करते हुए आत्मिक और साँसारिक उत्पादन बढ़ावे और उस उत्पादन का आवश्यक अंश जीवन निर्वाह के लिए उपयोग करते हुए शेष को निर्लोभ भाव से परमार्थ में लगावें । यही गीता का कर्म योग हैं । यह त्यागमय जीवन बिताने की नीति मानव जीवन के सदुपयोग की सर्वोत्तम नीति है, आत्मोन्नति की सर्वोत्तम साधना है ।

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