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विचार मंथन : सद्गुरु से मिलना जैसे रोशनी फैलाते दिये से एकाकार होना- डॉ प्रणव पंड्या

locationभोपालPublished: Dec 15, 2018 03:37:16 pm

Submitted by:

Shyam

सद्गुरु से मिलना जैसे रोशनी फैलाते दिये से एकाकार होना

Daily Thought Vichar Manthan

विचार मंथन : सद्गुरु से मिलना जैसे रोशनी फैलाते दिये से एकाकार होना- डॉ प्रणव पंड्या

महादेव शिव के कथन का अन्तिम सत्य यह है कि ‘गुरु ही ब्रह्म है।’ यह संक्षिप्त कथन बड़ा ही सारभूत है। इसे किसी बौद्धिक क्षमता से नहीं भावनाओं की गहराई से समझा जा सकता है। इसकी सार्थक अवधारणा के लिए शिष्य की छलकती भावनाएँ एवं समर्पित प्राण चाहिए । जिसमें यह पात्रता है, वह आसानी से भगवान् भोलेनाथ के कथन का अर्थ समझ सकेगा । ‘गुरु ही ब्रह्म है’ में अनेकों गूढ़ार्थ समाए हैं। जो गुरुतत्त्व को समझ सका, वही ब्रह्मतत्त्व का भी साक्षात्कार कर पाएगा। सद्गुरु कृपा से जिसे दिव्य दृष्टि मिल सकी, वही ब्रह्म का दर्शन करने में सक्षम हो सकेगा। इस अपूर्व दर्शन में द्रष्टा, दृष्टि, एवं दर्शन सब एकाकार हो जाएँगे अर्थात् शिष्य, सद्गुरु एवं ब्रह्मतत्त्व के बीच सभी भेद अपने आप ही मिट जाएँगे। यह सत्य सूर्य प्रभाव की तरह उजागर हो जाएगा कि सद्गुरु ही ब्रह्म है और ब्रह्म ही अपने सद्गुरु के रूप में साकार हुए हैं ।

 

भगवान् शिव कहते हैं, सद्गुरु की कृपा दृष्टि के अभाव में-

वेदशास्त्रपुराणानि इतिहासादिकानि च।
मंत्रयंत्रादि विद्याश्च स्मृतिरुच्चाटनादिकम्॥ ६॥
शैवशाक्तागमादीनि अन्यानि विविधानि च।
अपभ्रंशकराणीह जीवानां भ्रान्तचेतसाम्॥ ७॥

वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास, स्मृति, मंत्र, यंत्र, उच्चाटन आदि विद्याएँ, शैव-शाक्त, आगम आदि विविध विद्याएँ केवल जीव के चित्त को भ्रमित करने वाली सिद्ध होती हैं।



विद्या कोई हो, लौकिक या आध्यात्मिक उसके सार तत्त्व को समझने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। विद्या के विशेषज्ञ गुरु ही उसका बोध कराने में सक्षम और समर्थ होते हैं। गुरु के अभाव में अर्थवान् विद्याएँ भी अर्थहीन हो जाती हैं। इन विद्याओं के सार और सत्य को न समझ सकने के कारण भटकन ही पल्ले पड़ती है। उच्चस्तरीय तत्त्वों के बारे में पढ़े गए पुस्तकीय कथन केवल मानसिक बोझ बनकर रह जाते हैं। भारभूत हो जाते हैं। जितना ज्यादा पढ़ो, उतनी ही ज्यादा भ्रान्तियाँ घेर लेती हैं। गुरु के अभाव में काले अक्षर जिन्दगी में कालिमा ही फैलाते हैं। हाँ, यदि गुरुकृपा साथ हो, तो ये काले अक्षर रोशनी के दीए बन जाते हैं ।

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