भगवान् शिव कहते हैं, सद्गुरु की कृपा दृष्टि के अभाव में-
वेदशास्त्रपुराणानि इतिहासादिकानि च।
मंत्रयंत्रादि विद्याश्च स्मृतिरुच्चाटनादिकम्॥ ६॥
शैवशाक्तागमादीनि अन्यानि विविधानि च।
अपभ्रंशकराणीह जीवानां भ्रान्तचेतसाम्॥ ७॥
वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास, स्मृति, मंत्र, यंत्र, उच्चाटन आदि विद्याएँ, शैव-शाक्त, आगम आदि विविध विद्याएँ केवल जीव के चित्त को भ्रमित करने वाली सिद्ध होती हैं।
विद्या कोई हो, लौकिक या आध्यात्मिक उसके सार तत्त्व को समझने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। विद्या के विशेषज्ञ गुरु ही उसका बोध कराने में सक्षम और समर्थ होते हैं। गुरु के अभाव में अर्थवान् विद्याएँ भी अर्थहीन हो जाती हैं। इन विद्याओं के सार और सत्य को न समझ सकने के कारण भटकन ही पल्ले पड़ती है। उच्चस्तरीय तत्त्वों के बारे में पढ़े गए पुस्तकीय कथन केवल मानसिक बोझ बनकर रह जाते हैं। भारभूत हो जाते हैं। जितना ज्यादा पढ़ो, उतनी ही ज्यादा भ्रान्तियाँ घेर लेती हैं। गुरु के अभाव में काले अक्षर जिन्दगी में कालिमा ही फैलाते हैं। हाँ, यदि गुरुकृपा साथ हो, तो ये काले अक्षर रोशनी के दीए बन जाते हैं ।