इस जगत् में हमारे सुख के समान बाहर नहीं, भीतर हैं, अर्थात् सुख माने के लिए बाहर ढूंढ़ना वृथा है । हिंदू-शास्त्र भी इस बात का प्रमाण देती है कि बिना मन का तत्त्व-निर्णय किए, बाह्य जगत् के सुखों की कोई आशा नहीं । इसलिए मन का तत्त्व जानना और उस पर पूरा अधिकार जमा लेना अत्यंत आवश्यक है । मन को जीत लेने से ही हम संसार को जीत लेंगे ।
मनुष्य के लिए सुख की, आनंद की खान भीतर ही है । उसकी झलक बाहर भी दिखाई देती है, पर वह केवल झलक ही है । शास्त्र का कथन ठीक ही है कि यदि सत्य वस्तु, ब्रह्म या परमात्मा का रूप जानना हो, तो हमें अपने चित्त को क्षण भर के लिए स्थिर बनाना पड़ेगा । इसे साधना-धर्म का अंग कहते हैं। इसलिए स्थायी सुख-प्राप्ति के लिए हमें धर्म का आश्रय लेना पड़ेगा । धर्म ही हमें वर्तमान मुहूर्त के क्षणिक सुख के बदले भविष्य में होने वाले अक्षय सुख का मार्ग बताता है ।