आपको धीरे-धीरे, मधुर और नम्र होकर बातचीत करनी चाहिए, मितभाषी बनों । अवांछनीय विचारों और संवेदनाओं को निकाल दो। अभिमान या चिड़चिड़ेपन को लेशमात्र भी बाकी नहीं रहने दो । अपने आप को बिलकुल भुला दो । अपने व्यक्तित्व का एक भी अंश या भाव न रहने पावे । सेवा-कार्य के लिए पूर्ण आत्मसमर्पण की आवश्यकता है ।
यदि आप में उपर्युक्त सद्गुण मौजूद हैं तो आप संसार के लिए पथप्रदर्शक और अमूल्य प्रसाद रूप हो । आप एक अलौकिक सुगंधित पुष्प हो जिसकी सुगंध देश-भर में व्याप्त हो जाएगी। यदि आपने ऐसा कर लिया तो समझ लो आपने बुद्धत्व की उच्चतम अवस्था को प्राप्त कर लिया ।