भय का एक सामान्य रूप यह भी होता है कि अन्धेरे में जाते ही डर लगता है, अकेले यात्रा करने में किसी अनिष्ट की सम्भावना दिखाई देती है, रोगी होने बीमार पड़ने पर रोग के ठीक न होने तथा उसी के कारण मृत्युद्वार तह पहुँच जाने का डर रहता है । यह भी भविष्य के प्रति अशुभ आशंकाओं का ही छोटा रूप है । अँधेरे में जाते समय जी क्यों काँपने लगाता है? इसलिए कि आशंका होती है कहीं कोई कीड़ा-काँटा न बैठा हो या कोई भूत-प्रेत ही न पकड़ ले । अकेले यात्रा करने में भी चोर डाकुओं द्वारा सताये जाने, लूट लेने की आशंका ही डराती है। इस तरह के डर भी एक तरह से भविष्य के प्रति अशुभ आशंकाओं के परिणाम ही हैं ।
इस तरह की आशंकाएँ स्वभाव बन कर भय के रूप में परिणत हो जाती हैं और इन आशंकाओं या भयों का एक ही कारण है- मन की दुर्बलता । भय और कुछ नहीं मन की दुर्बलता से उत्पन्न हुआ भूत ही है । इस सम्बन्ध में एक जापानी लोक कथा प्रचलित है । किसी व्यक्ति को एक डरावना जिन्न सताया करता था । वह जागता था तो जिन्न सामने खड़ा रहता था और उसे तरह-तरह से सताया करता था, सोता था तो सपने में डरावनी हरकतों से उसे परेशान करता था । एक दिन उसने हिम्मत कर जिन्न से पूछ ही लिया, ‘तुम कहाँ से आ गए हो? क्यों मुझे इतना सताते रहते हो? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ।