घर पर अथवा आफिस में अकेले मत बैठिए । दूसरे मनुष्यों से मेल बढ़ाइए और अपने विचार बदलिए । बातें अधिक करिए, और सोचिए कम । आप पर जैसी भी बीते, उसी को सहर्ष स्वीकार कर लीजिये। अपनी असफलता, पराजय, एवं दुर्भाग्य पर अपना ध्यान मत जमाइये ।
मनुष्य जैसा कार्य करता है, वैसे ही उसके मन में भाव उठते हैं
मनुष्य जैसा कार्य करता है, वैसे ही उसके मन में भाव उठते हैं । अतः कार्य करते समय अत्यन्त प्रसन्न चित्त दिखाई दीजिये, मुस्कुराइये और प्रफुलित रहिये । यदि आप ऐसा करेंगे तो शीघ्र ही प्रसन्नता का अनुभव करेंगे । इसके विपरीत आप यदि झुककर, लड़खड़ाते हुए, नीचे की ओर आँखें किये, त्यौरियाँ चढ़ाए, उदास भाव से चलेंगे तो आप अवश्य उदास हो जाएंगे । इधर-उधर की छोटी-छोटी सी बातों से असन्तुष्ट होने की अपेक्षा अपने भाग्य को सराहिए और अपने आपको धन्य समझिए । इस सिद्धान्त पर सोचिए कि ‘इससे भी बुरा हो सकता था । जो कुछ आपके पास नहीं है, उस पर ध्यान देने की अपेक्षा जो कुछ आपके पास है, उस पर ध्यान दीजिए । आपको अधिकतर यही सोचना चाहिए कि ‘जो कुछ मेरे पास है, उसके लिए भगवान को अनेकों बार धन्यवाद है । हर पल भगवान को याद करते रहने से मन में प्रसन्नता बनी रहेगी ।