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विचार मंथन : हे ईश्वर मैं जो भी करता हूँ, उसका लाभ सारे संसार को मिले- मैनली हाप्किन्स

locationभोपालPublished: Nov 04, 2018 05:52:24 pm

Submitted by:

Shyam

हे ईश्वर मैं जो भी करता हूँ, उसका लाभ सारे संसार को मिले- मैनली हाप्किन्स
मैनली हाप्किन्स, (अखण्ड ज्योति 1969 जून पृष्ठ 1)

Daily Thought Vichar Manthan

विचार मंथन : मैं जो करता हूँ, उसका लाभ सारे संसार को मिले- मैनली हाप्किन्स

कर्म ही ईश्वर-उपासना

उपासना प्रतिदिन करनी चाहिये । जिसने सूरज, चाँद बनाये, फूल-फल और पौधे उगायें, कई वर्ण, कई जाति के प्राणी बनाये उसके समीप बैठेंगे नहीं तो विश्व की यथार्थता का पता कैसे चलेगा? शुद्ध हृदय से कीर्तन-भजन प्रवचन में भाग लेना प्रभु की स्तुति है उससे अपने देह, मन और बुद्धि के वह सूक्ष्म संस्थान जागृत होते है, जो मनुष्य को सफल, सद्गुणी और दूरदर्शी बनाते हैं, उपासना का जीवन के विकास से अद्वितीय सम्बन्ध है ।

 

किन्तु केवल प्रार्थना ही प्रभु का स्तवन नहीं है । हम कर्म से भी भगवान् की उपासना करती हैं । भगवान् कोई मनुष्य नहीं हैं, वह तो सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान् क्रियाशील है, इसलिये उपासना का अभाव रहने पर भी उसके कर्म करने वाला मनुष्य उसे बहुत शीघ्र आत्मज्ञान कर लेता है । लकड़ी काटना, सड़क के पत्थर फोड़ना, मकान की सफाई, सजावट और खलिहान में अन्न निकालना, वर्तन धोना और भोजन पकाना यह भी भगवान् की ही स्तुति हैं यदि हम यह सारे कर्म इस आशय से करें कि उससे विश्वात्मा का कल्याण हो। कर्त्तव्य भावना से किये गये कर्म परोपकार से भगवान् उतना ही प्रसन्न होता है जितना कीर्तन और भजन से। स्वार्थ के लिये नहीं आत्म-सन्तोष के लिये किये गये कर्म से बढ़कर फलदायक ईश्वर की भक्ति और उपासना पद्धति और कोई दूसरी नहीं हो सकती ।

 

पूजा करते समय हम कहते है-हे प्रभु! तू मुझे ऊपर उठा, मेरा कल्याण कर, मेरी शक्तियों को ऊर्ध्वगामी बना दे और कर्म करते समय हमारी भावना यह कहती रहे, हे प्रभु! तूने मुझे इतनी शक्ति दी, इतना ज्ञान दिया, वैभव और वर्चस्व दिया, वह कम विकसित व्यक्तियों की सेवा में काम आये । मैं जो करता हूँ, उसका लाभ सारे संसार को मिले ।

 

इन भावनाओं में कहीं अधिक शक्ति और आत्म-कल्याण की सुनिश्चितता है । इसलिये भजन की अपेक्षा ईश्वरीय आदेशों का पालन करना ही सच्ची उपासना है ।

मैनली हाप्किन्स
अखण्ड ज्योति 1969 जून पृष्ठ 1

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