इसी तरह का चमत्कार गाँधी युग में भी उत्पन्न हुआ । अंग्रेजों की सामर्थ्य और शक्ति पहाड़ जितनी ऊँची थी । उन दिनों यह कहावत आम प्रचलित थी कि अंग्रेजों के राज्य में सूर्य अस्त नहीं होता था । बुद्धि, कौशल में भी उनका कोई सानी नहीं था । फिर निहत्थे मुट्ठी भर सत्याग्रही उनका क्या बिगाड़ सकते थे । हजार वर्ष से गुलाम रही जनता में भी ऐसा साहस नहीं था कि इतने शक्तिशाली साम्राज्य से लोहा ले सके और त्याग-बलिदान कर सके । ऐसी निराशापूर्ण परिस्थितियों में भी फिर एक अप्रत्याशित उभार उमड़ा और स्वतन्त्रता संग्राम छिड़ा, यही नहीं अन्तत वह विजयी होकर रहा ।
उस संग्राम में सर्वसाधारण ने जिस पराक्रम का परिचय दिया वह देखते ही बनता था । असमर्थो की समर्थता, साधनहीनों को साधनों की उपलब्धता तथा असहायों को सहायता के लिए न जाने कहाँ से अनुकूलताएँ उपस्थित हुई और असम्भव लगने वाला लक्ष्य पूरा होकर रहा ।