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विचार मंथन : नवरात्रि काल में अपने आपको साफ-सुथरा कर लें, अन्यथा जगन्माता यह कार्य बलपूर्वक करती हैं- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

नवरात्रि काल में अपने आपको साफ-सुथरा कर लें, अन्यथा जगन्माता यह कार्य बलपूर्वक करती हैं- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

Apr 05, 2019 / 06:58 pm

Shyam

daily thought

विचार मंथन : नवरात्रि काल में अपने आपको साफ-सुथरा कर लें, अन्यथा जगन्माता यह कार्य बलपूर्वक करती हैं- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

नवरात्रि शक्ति साधना का पर्व है । वैसे तो माता का प्रेम अपनी संतान पर सदा ही बरसता रहता है, पर कभी-कभी यह प्रेम छलक पड़ता है, तब वह अपनी संतान को सीने से लगाकर अपने प्यार का अहसास कराती है। संरक्षण का आश्वासन देती है। नवरात्रि की समयावधि भी आद्यशक्ति की स्नेहाभिव्यक्ति का ऐसा ही विशिष्ट काल है। यही शक्ति विश्व के कण-कण में विद्यमान है। इसी तथ्य को इंगित करते हुए देवी भागवत् में कहा गया है-

।। तेजोयस्य विराजते स बलवान स्थूले बुकः प्रत्ययः ।।
अर्थात्- शक्ति व तेज से प्रत्येक स्थूल पदार्थ में विद्यमान अतुलित बलशाली परमेश्वरी हमारी रक्षा और विकास करे ।

 

उस परम शक्ति की आशा एवं अपेक्षा के अनुरूप स्वयं को गढ़े बिना हमारा त्राण संभव नहीं है । यह पृथ्वी सदाचार पर ही टिकी हुई है । न्याय को अनदेखा नहीं किया जा सकता । सारा विश्व गणित के समीकरण जैसा है, इसे चाहे जैसा उलटो-पलटो, वह अपना संतुलन बनाए रखता है । मनुष्य पर दैवी और आसुरी दोनों ही चेतनाओं का प्रभाव है, वह जिस ओर उन्मुख होगा वैसा ही उसका स्वरूप बनता जाएगा । परन्तु यदि वह अपनी मूल प्रकृति सदाचार का निर्वाह करे तो बंधन से मुक्ति निश्चित है। फिर उसे पूर्णता का लक्ष्य प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होती । आवश्यकता अपना सही स्वरूप जानने भर की है ।


इसके लिए प्रयास करने का सबसे उपयुक्त समय यही है । शास्त्रकारों से लेकर ऋषि-मनीषियों सभी ने एकमत होकर नवरात्रि की महिमा का गुणगान किया है । जो भी साधक इस समयावधि में गायत्री महामंत्र के 24 हजार का लघु अनुष्ठान करता है, वह अनेक ऋद्दि सिद्धयों का स्वामी बन सकता है । साधना का परिणाम ही सिद्धि है, यह सिद्धियाँ भौतिक प्रतिभा और आत्मिक दिव्यता के रूप में जिन साधना आधारों के सहारे विकसित होती है । नवरात्रि के पावन पर्व पर देवता अनुदान-वरदान देने के लिए स्वयं लालायित रहते हैं । ऐसे दुर्लभ समय का उपयोग हम जड़ता में अनुरक्त होकर न बिताएँ, चेतना के करीब जाएँ । ईश्वर चेतन है इसीलिए उसका अंश जीव भी चैतन्य स्वरूप है । साथ ही मनुष्य में वे सब विशेषताएँ मौजूद हैं, जो उसके मूल उद्गम परमात्मा में है ।

 

दैवी अनुशासन के अनुरूप जो अपनी जीवनचर्या का निर्धारण करने में सक्षम होता है वही इस सत्य का साक्षात्कार कर पाता है । इस यात्रा में स्वयं से कठोर संघर्ष करना पड़ता है, पर आत्मबल सम्पन्न साधक लक्ष्य तक पहुँच ही जाते हैं । नवरात्रि की बेला शक्ति आराधना की बेला है । माता के विशेष अनुदानों से लाभान्वित होने की बेला है । अपनी साधना तपस्या द्वारा हम स्वयं ही अपने बाह्य एवं अंतर को साफ-सुथरा कर लें । अन्यथा जगन्माता को यह कार्य बलपूर्वक करना पड़ता है,और वह करती भी है ।

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