।। तेजोयस्य विराजते स बलवान स्थूले बुकः प्रत्ययः ।।
अर्थात्- शक्ति व तेज से प्रत्येक स्थूल पदार्थ में विद्यमान अतुलित बलशाली परमेश्वरी हमारी रक्षा और विकास करे ।
उस परम शक्ति की आशा एवं अपेक्षा के अनुरूप स्वयं को गढ़े बिना हमारा त्राण संभव नहीं है । यह पृथ्वी सदाचार पर ही टिकी हुई है । न्याय को अनदेखा नहीं किया जा सकता । सारा विश्व गणित के समीकरण जैसा है, इसे चाहे जैसा उलटो-पलटो, वह अपना संतुलन बनाए रखता है । मनुष्य पर दैवी और आसुरी दोनों ही चेतनाओं का प्रभाव है, वह जिस ओर उन्मुख होगा वैसा ही उसका स्वरूप बनता जाएगा । परन्तु यदि वह अपनी मूल प्रकृति सदाचार का निर्वाह करे तो बंधन से मुक्ति निश्चित है। फिर उसे पूर्णता का लक्ष्य प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होती । आवश्यकता अपना सही स्वरूप जानने भर की है ।
इसके लिए प्रयास करने का सबसे उपयुक्त समय यही है । शास्त्रकारों से लेकर ऋषि-मनीषियों सभी ने एकमत होकर नवरात्रि की महिमा का गुणगान किया है । जो भी साधक इस समयावधि में गायत्री महामंत्र के 24 हजार का लघु अनुष्ठान करता है, वह अनेक ऋद्दि सिद्धयों का स्वामी बन सकता है । साधना का परिणाम ही सिद्धि है, यह सिद्धियाँ भौतिक प्रतिभा और आत्मिक दिव्यता के रूप में जिन साधना आधारों के सहारे विकसित होती है । नवरात्रि के पावन पर्व पर देवता अनुदान-वरदान देने के लिए स्वयं लालायित रहते हैं । ऐसे दुर्लभ समय का उपयोग हम जड़ता में अनुरक्त होकर न बिताएँ, चेतना के करीब जाएँ । ईश्वर चेतन है इसीलिए उसका अंश जीव भी चैतन्य स्वरूप है । साथ ही मनुष्य में वे सब विशेषताएँ मौजूद हैं, जो उसके मूल उद्गम परमात्मा में है ।
दैवी अनुशासन के अनुरूप जो अपनी जीवनचर्या का निर्धारण करने में सक्षम होता है वही इस सत्य का साक्षात्कार कर पाता है । इस यात्रा में स्वयं से कठोर संघर्ष करना पड़ता है, पर आत्मबल सम्पन्न साधक लक्ष्य तक पहुँच ही जाते हैं । नवरात्रि की बेला शक्ति आराधना की बेला है । माता के विशेष अनुदानों से लाभान्वित होने की बेला है । अपनी साधना तपस्या द्वारा हम स्वयं ही अपने बाह्य एवं अंतर को साफ-सुथरा कर लें । अन्यथा जगन्माता को यह कार्य बलपूर्वक करना पड़ता है,और वह करती भी है ।