scriptविचार मंथन : सृष्टि संचालन में सहयोगी बनने लिए ईश्वर ने मनुष्य को योग्य बनाया, फिर भी वह उस श्रेय से वंचित क्यों रहता है- अष्टावक्र जी | daily thought vichar manthan rishi ashtavakra | Patrika News

विचार मंथन : सृष्टि संचालन में सहयोगी बनने लिए ईश्वर ने मनुष्य को योग्य बनाया, फिर भी वह उस श्रेय से वंचित क्यों रहता है- अष्टावक्र जी

locationभोपालPublished: May 25, 2019 05:40:15 pm

Submitted by:

Shyam

मनुष्य को परम पिता परमात्मा से मिली दो विशेष विभूतियां

daily thought vichar manthan

विचार मंथन : सृष्टि संचालन में सहयोगी बनने लिए ईश्वर ने मनुष्य को योग्य बनाया, फिर भी वह उस श्रेय से वंचित क्यों रहता है- अष्टावक्र जी

ब्रह्माण्ड के सम्राट् ईश्वर का राजकुमार मनुष्य

प्रज्ञा पुराण के प्रथम अध्याय के श्लोक 5 एवं 6 में श्री अष्टावक्र जी मनुष्य को सर्वगुण सम्पन्न कैस बनना चाहिए, और भगवान द्वारा दी गई विभूतियों का लाभ प्रसन्नता पूर्वक कैसे लेना चाहिए के बारे में बहुत शानदार बात कहते हैं।

 

ईश्वर: भूपति: साक्षाद् ब्रह्माण्डस्य महाने।
मानवं राजपुत्रं स्वं कर्तुं सर्वगुणान्वितम् ॥5॥
विभूती: स्वा अदाद् बीजरूपे सर्वा मुदान्वित:
सृष्टि संचालकोऽप्येष श्रेयसा रहित: कथम्?॥6॥

अर्थात- ब्रह्माण्ड के सम्राट् ईश्वर ने मनुष्य को सर्वगुण सम्पन्न उत्तराधिकारी राजकुमार बनाया। अपनी समस्त विभूतियां उसे बीजरूप में प्रसन्नतापूर्वक प्रदान कीं। उसे सृष्टि संचालन में सहयोगी बन सकने के योग्य बनाया, फिर भी वह उस श्रेय से, गौरव से वंचित क्यों रहता है? (प्रज्ञा पुराण (भाग 1)

ब्रह्मज्ञानी अष्टावक्र की जिज्ञासा मानव मात्र से सम्बन्धित है। नित्य देखने में आता है ईश्वर का मुकुटमणि कहलाने वाला, सुर दुर्लभ मानव योनि पाने वाला यह सौभाग्यशाली जीव अपने परम पिता से दो विशेष विभूतियां पाने के बावुजूद दिग्भ्रान्त हो दीन-हीन जैसा जीवन जीता है। ये दो विभूतियां हैं-बीज रूप में ईश्वर के समस्त गुण तथा सृष्टि को सुव्यवस्थित बनाने में उसकी ईश्वर के साथ साझेदार जैसी भूमिका। बीज फलता है तब मृदा को स्वरूप लेता है। इसका बहिरंग स्वरूप उसी जाति का होता है जिस जाति का वह स्वयं है। लघु से महान्, अणु से विभु बनने की महत् सामर्थ्य अपने आपमें एक अलभ्य विरासत है। इसे पाने के लिए उसे न जाने कितनी योनियों में कष्ट भोगना पड़ा।

 

8 दिन बाद आने वाली है शनि जयंती, चाहते हैं प्रसन्न करना तो आज से ही कर लें ये तैयारी

 

सहयोग-सहकार – विग्रह-असहयोग

सहयोग-सहकार भी सुसंचालन के लिए न कि संतुलन को बिगाड़ने के लिए। ऐसे में जब मुण कर्म रूपी बीज भी गलने से इन्कार कर दे एवं मानव संतुलन-व्यवस्था के स्थान पर विग्रह-असहयोग करने लगे तो असमंजस होना स्वाभाविक है।

******

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो