रेशम का कीड़ा अपना कोया खुद बुनता है और फिर उसी में घुटकर मर जाता है । घुटन की छटपटाहट से उबरने के लिए वह भी शायद हमारी ही तरह कभी विधाता, कभी व्यवस्था और कभी पड़ौसी को कोसता होगा । हमारे मन रूपी कीड़े को भी अपने ही बनाये कोयों की कैद में बंधना-घुटन पड़ता है ।
‘कोयाबन्दी’ की निष्क्रियता के अँधेरे बंद तहखानों से निकलकर ऊपर आओ, ‘मानसिक कालकोठरी’ के वातायनों को सूर्य की ऊष्मा और स्वच्छ सुरभित पवन का स्वागत करने दो । तुम्हारे कुस्वास्थ्य का यही एक मात्र निदान है ।
जाओ और यही संदेश अपने संपर्क में आने वाले जन-जन तक पहुंचाओ ताकि जहाँ-जहाँ भी किसी प्रकार की बुराई हो उसे दूर करने में अपनी-अपनी सीमा और शक्ति भर वे सक्रिय सहयोग दे सकें । उनकी समस्त सामर्थ्य केवल हवा के साथ लड़ने में ही व्यर्थ न चली जाये । एक खूबसूरत सोच से नकारात्मकता का वातावरण भी तुरंत सकारात्मकता में परिवर्तन होता है ।