जब तक शरीर में प्राण हैं काम करते रहों
जीवन के अंतिम समय तक यानी की 102 वर्ष की आयु में भी वे काम करते रहे, उन्होंने कहा, इस शरीर में “जंग लग जाने से बेहतर है, की अंतिम समय तक काम करते रहो, और उनकी यह बात सच भी हुए, 102 वर्ष की उम्र में भी वे वह कार्य कर सकते थे, करते रहे, और वे अपने कार्यों के द्वारा अमर हो गये, क्योंकि अन्त समय तक भी उनका ज्ञान पाने का उत्साह कम नहीं हुआ था । वे सदैव एकाग्रचित्त होकर ज्ञान की तलाश में लगे रहते थे । विश्वेश्वरैया कठिन परिश्रम, ज्ञान को प्राप्त करने के अथक प्रयास, परियोजनाओं व योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए ज्ञान का उपयोग, जिसके द्वारा जनसमुदाय की आर्थिक व सामाजिक स्थिति को सुधारने के अधिक अवसर मिले, द्वारा महानता प्राप्त की । विश्वेश्वरैया में बहुमूर्तिदर्शी जैसा कुछ था । जितनी बार भी हम उन्हें देखते हैं, उनकी महानता का एक नया उदाहरण सामने आता है। चाहे उन्होंने किसी भी दृष्टिकोण से सोचा हो, उनकी महानता का कोई मुक़ाबला नहीं कर सकता ।
विश्वेश्वरैया जी ऐसे महान भारत रत्न थे जिनके पास हर प्रश्न का उत्तर मौजूद था । समाधान ढंढने की क्षमता उनके पूरे जीवन में लगातार विकसित होती रही और इस कारण वह एक महान व्यावहारिक व्यक्ति बन गये । वे कहा करते थे की मेरे जीवन का सार था और उनका संदेश एक मात्र यह हैं कि- ‘पहले जानो, फिर करो ।’