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विचार मंथन : अपने काम को चाँद, तारों और सूरज की तरह नि:स्वार्थ बनाओ, सफलता बहुत देर तक बनी रहेगी- स्वामी रामतीर्थ

locationभोपालPublished: Oct 17, 2018 04:14:08 pm

Submitted by:

Shyam

अपने काम को चाँद, तारों और सूरज की तरह नि:स्वार्थ बनाओ, सफलता बहुत देर तक बनी रहेगी- स्वामी रामतीर्थ
 

Daily Thought Vichar Manthan

विचार मंथन : अपने काम को चाँद, तारों और सूरज की तरह नि:स्वार्थ बनाओ, सफलता बहुत देर तक बनी रहेगी- स्वामी रामतीर्थ

 

निराशा निर्बलता का चिन्ह है । घोर कर्म ही विश्राम है । भय से र दंड से पाप कभी बंद नहीं होते । भाग्य का दूसरा नाम विचार है. जैसा आप सोचते है, वैसा आप बन जाते है । किसी भी मत, धर्म या पंथ को जो आजकल की वैज्ञानिक गवेषणा के स्वस्थ और कल्याणकारी परिणामों से मेल नहीं खाता, कोई अधिकार नहीं है कि वह अपने अंधे भक्तों पर जबरदस्ती करे या या उन्हें अपना शिकार बनाए । वही उन्नति कर सकता है जो अपने को उपदेश दे सकता है । परिवर्तन, समयानुकूल परिवर्तन से घृणा करके पुरानी रीतियों तथा वंश परम्परा पर अधिक जोर देकर अपने को मनुष्यता के आसन से निचे मत गिराओ ।

 

किसी देश की शांति छोटे विचारों के बड़े आदमियों से नहीं अपितु बड़े विचारों के छोटे आदमियों से बढ़ती है । वास्तविक शिक्षा का आदर्श यह है कि हम अपने भीतर से कितनी विद्या निकल सकते है, यह नहीं कि बाहर से कितनी भीतर डाल चुके है । वे मित्रताएं जहाँ दिल नहीं मिलते, बारूद से भी बदतर है बड़ी ऊँची आवाज से टूटती है । नियमों का निर्माण मनुष्य के लिए हुआ है, मनुष्य का निर्माण नियमों के लिए नहीं हुआ है । नहीं कहने से तुम्हारे चरित्र की शक्ति प्रकट होती है । सांसारिक बुद्धिमता केवल अज्ञान का बहाना है । अपने काम को चाँद, तारों और सूरज की तरह नि:स्वार्थ बनाओ, तभी सफलता मिलेगी, और बहुत देर तक बनी भी रहेगी ।

 

शाश्वतता का विचार ही विवेक है । सौन्दर्य आत्मदेव की भाषा है । विश्व राम का शरीर है । शरीर की जो रात है, आत्मा का वह दिन है । अपना आदर स्वयं करो तभी सब आपका आदर करेंगे । इच्छामात्र प्रेम है और प्रेम ही ईश्वर है और वही ईश्वर तुम हो । अपने प्रति सच्चे बनिये और संसार की ऐसी किसी भी बात पर ध्यान मत दीजिए । शब्दों की अपेक्षा कर्म अधिक जोर से बोलते है । उन विषयों को पढना जो हमारे जीवन में कभी काम नहीं आते, शिक्षा नहीं है । यदि कोई मुझे अपना दर्शन एक शब्द में प्रकट करने की आज्ञा दे तो मैं कहूँगा -‘आत्मविश्वास’ । यह नहीं हो सकता की तुम दुनिया के भी मजे लो और सत्य को भी पालो ।

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