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विचार मंथन : जागृतात्माओं जागों, जब जटायु व गिलहरी अनिती के खिलाफ चुप नहीं बैठे- स्वामी विवेकानंद

locationभोपालPublished: Mar 18, 2019 05:20:04 pm

Submitted by:

Shyam Shyam Kishor

जागृतात्माओं जागों, जब जटायु व गिलहरी अनिती के खिलाफ चुप नहीं बैठे- स्वामी विवेकानंद

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विचार मंथन : जागृतात्माओं जागों, जब जटायु व गिलहरी अनिती के खिलाफ चुप नहीं बैठे- स्वामी विवेकानंद

जागृतात्माओं जागों, जब जटायु व गिलहरी अनिती के खिलाफ चुप नहीं बैठे

पंख कटे जटायु को गोद में लेकर भगवान् राम ने उसका अभिषेक आँसुओं से किया । स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए भगवान् राम ने कहा-तात् । तुम जानते थे रावण दुर्द्धर्ष और महाबलवान है, फिर उससे तुमने युद्ध क्यों किया ?

 

अपनी आँखों से मोती ढुलकाते हुए जटायु ने गर्वोन्नत वाणी में कहा- प्रभो! मुझे मृत्यु का भय नहीं है, भय तो तब था जब अन्याय के प्रतिकार की शक्ति नहीं जागती ? भगवान् राम ने कहा-तात् ! तुम धन्य हो ! तुम्हारी जैसी संस्कारवान् आत्माओं से संसार को कल्याण का मार्गदर्शन मिलेगा ।

 

गिलहरी पूँछ में धूल लाती और समुद्र में डाल आती । वानरों ने पूछा-देवि! तुम्हारी पूँछ की मिट्टी से समुद्र का क्या बिगडे़गा । तभी वहाँ पहुँचे भगवान् राम ने उसे अपनी गोद में उठाकर कहा ‘एक-एक कण धूल एक-एक बूँद पानी सुखा देने के मर्म को समझो वानरो। यह गिलहरी चिरकाल तक सत्कर्म में सहयोग के प्रतीक रूप में सुपूजित रहेगी । जो सोये रहते हैं वे तो प्रत्यक्ष सौभाग्य सामने आने पर भी उसका लाभ नहीं उठा पाते । इसलिए जागृतात्माओं की तुलना में उनका जीवन जीवित-मृतकों के समान ही होता है ।

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