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विचार मंथन : किसी पुस्तक ने ईश्वर को उत्पन्न नहीं किया, किन्तु ईश्वर की प्रेरणा से धर्म पुस्तकों की रचना हुई है- स्वामी विवेकानन्द

locationभोपालPublished: Apr 20, 2019 04:45:34 pm

Submitted by:

Shyam Shyam Kishor

आत्मा की परमात्मा से एकता कर देना ही सब धर्मों का मूल है- स्वामी विवेकानन्द

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विचार मंथन : किसी पुस्तक ने ईश्वर को उत्पन्न नहीं किया, किन्तु ईश्वर की प्रेरणा से धर्म पुस्तकों की रचना हुई है- स्वामी विवेकानन्द

जिनका अन्तःकरण पवित्र है..

आप यह अच्छी तरह समझ रक्खें कि किसी धर्म-पुस्तक का पाठ करने अथवा उसमें लिखी हुई धर्म विधियों की कवायद करने से ही कोई धार्मिक नहीं हो सकता । किसी धर्म या धर्म-पुस्तक पर विश्वास करने से ही यह ‘जन्म सार्थक नहीं होगा’ उसमें बताये हुए मार्गों का अनुभव करना चाहिये । ‘जिनका अन्तःकरण पवित्र है, वे धन्य हैं, वे ईश्वर को देख सकेंगे ।’ यह बाइबिल का कथन अक्षरशः सत्य है । परमेश्वर का साक्षात्कार करना ही मुक्ति है ।

 

किसी पुस्तक ने ईश्वर को उत्पन्न नहीं किया..

कुछ मन्त्र रट लेने या मन्दिरों में शब्दाडम्बर करने से मुक्ति नहीं मिलती, परमात्मा की प्राप्ति के लिए बाह्य साधन कुछ काम नहीं आते, उसके लिये आन्तरिक सामग्री की जरूरत है । इससे कोई यह न समझलें कि बाहरी साधनों का मैं विरोधी हूँ । आरम्भ में उनकी आवश्यकता होती ही है पर साधक जैसा-जैसा उन्नत होता है, वैसी-वैसी उसकी उस ओर से प्रवृत्ति कम हो चलती है, आप यह निश्चय समझें कि किसी पुस्तक ने ईश्वर को उत्पन्न नहीं किया किन्तु ईश्वर की प्रेरणा से धर्म पुस्तकों की रचना हुई है ।

 

जिस दिन परमात्मा का अनुभव कर लेंगे..

यही बात जीवात्मा और परमात्मा का ऐक्य कर देने का है । यही विश्वधर्म है । कल्पना और मार्ग भिन्न – भिन्न होने पर भी सबका केन्द्र एक ही है । सब धर्मों का मूल्य क्या है? ऐसा यदि कोई मुझ से प्रश्न करे तो मैं उसे यही उत्तर दूँगा कि ‘आत्मा की परमात्मा से एकता कर देना ही सब धर्मों का मूल है । सच्ची दृष्टि से छाया के समान देख पड़ने वाले और इंद्रियों से अनुभव होने वाले इस जगत में जिस दिन परमात्मा का अनुभव कर लेंगे उसी दिन हम कृतकार्य होंगे तब हमको इस बात के विचार करने की आवश्यकता न होगी कि हमें यह दसा किस मार्ग से प्राप्त हुई है । आप चाहे किसी मत को स्वीकार करें, या न करें किसी मत या पन्थ के कहावें या न कहावें परमेश्वर का अस्तित्व अपने आप में अनुभव करने से ही आपका काम बन जायगा ।

 

परमात्मा की स्पष्ट कल्पना भी..

कोई मनुष्य संसार के सब धर्मों पर विश्वास करता होगा, संसार के सब धर्म ग्रन्थ उसे कंठस्थ होंगे, संसार के सब तीर्थों में उसने स्नान किया होगा । तो भी यह सम्भव नहीं है कि परमात्मा की स्पष्ट कल्पना भी उसके हृदय में हो ! इसके विपरीत सारे जीवन में जिसने एक भी मन्दिर या धर्मग्रन्थ नहीं देखा और न उसमें लिखी कोई विधि ही की होगी, ऐसा पुरुष परमात्मा का अनुभव अन्तःकरण में करता हुआ देख पड़ना सम्भव है ।

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