1- पहले तरह के लोग वे है, जो कोरे नास्तिक हैं, वे स्पष्ट मना करते हैं, कि ईश्वर नहीं है।
2- दूसरे वे लोग है जो आस्तिक तो हैं, ईश्वर को मानते भी हैं, परंतु ईश्वर का स्वरूप ठीक नहीं समझते। वे वृक्षों में, मूर्तियों में, फोटो में और पता नहीं कहां-कहां ईश्वर की पूजा करते रहते हैं।
3- तीसरे वे लोग हैं जो ईश्वर को शब्दों से तो ठीक जानते मानते हैं, परंतु उसके अनुसार आचरण नहीं कर पाते। जैसे कि वे कहते हैं, ईश्वर न्यायकारी है, हमारे पापों का दंड माफ नहीं करेगा। फिर भी वो जानते हुए कहीं ना कहीं पाप कर ही लेते हैं।
4- चौथे प्रकार के वे लोग हैं, जो ईश्वर को ठीक तरह से जानते भी हैं, मानते भी हैं, और आचरण भी वैसा ही करते हैं। अर्थात वे पाप नहीं करते। सबसे प्रेम का व्यवहार करते हैं।
आगे स्वामी जी बोले सच्चे पूर्ण आस्तिक तो यही हैं, चौथे वाले लोग है। यदि आप पहले वर्ग में हैं, अर्थात नास्तिक हैं, तो भी आप ईश्वर से लाभ नहीं उठा पाएंगे। यदि आप दूसरे वर्ग में हैं, तो भी आप भटकते रहेंगे। आपके पाप नहीं छूटेंगे। और ईश्वर से लाभ नहीं ले पाएंगे। यदि आप तीसरे वर्ग में हैं, तो भी पाप बंद नहीं होंगे, क्योंकि आपका शाब्दिक ज्ञान ठीक होते हुए भी आचरण ठीक नहीं है, और आपको उसका दंड भोगना पड़ेगा।
इसलिए मैं तुम सबसे कहता हूं की तुम सबकों चौथे वर्ग में ही आना चाहिए, और नहीं आएं है तो प्रयत्न करों, एक दिन तुम्हारी गिनती चौथे वर्ग में होने लगेगी। दुनियां के सभी लोगों को सच्चा आचरणशील आस्तिक बनना चाहिए। जिससे सभी का वर्तमान जीवन भी अच्छा बने और भविष्य भी स्वर्णिम हो, सुखदायक हो।
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