इसी क्रम में एक परंपरा हिंदुओं में देखने को मिलती है, पंडित सुनील शर्मा के अनुसार इसके तहत मकान की नींव खोदते समय उसमें एक छोटा कलश और चांदी का सांप गाड़ा जाता है। माना जाता है कि इससे मकान को मजबूत तो मिलती ही है साथ ही घर में सुख समृद्धि भी आती है। तो चलिए जानते हैं कि नींव में कैसे और क्यों स्थापित किए जाते हैं नाग और कलश?
पंडित शर्मा के अनुसार श्रीमद्भागवत महापुराण के पांचवें स्कंद के मुताबिक पृथ्वी के नीचे पाताल लोक है और इसके स्वामी शेषनाग हैं। भूमि से 10,000 योजन नीचे अतल, अतल से दस हजार योजन नीचे वितल, उससे दस हजार योजन नीचे सतल, इसी क्रम से सब लोक स्थित हैं। अतल, वितल, सतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल ये 7 लोक पाताल स्वर्ग कहलाते हैं।
मान्यता के अनुसार इनमें भी काम, भोग, ऐश्वर्य, आनन्द, विभूति विद्यमान हैं। जिसके चलते दैत्य, दानव, नाग ये सब वहां आनंदपूर्वक भोग-विलास करते हुए रहते हैं। माना जाता है कि इन सब पातालों में अनेक पुरियां प्रकाशमान रहती हैं। इनमें देवलोक की शोभा से भी अधिक वाटिका और उपवन हैं। इन पातालों में सूर्य आदि ग्रहों के न होने से दिन-रात्रि का अंतर नहीं है। इस कारण यहां काल का भी भय नहीं रहता है। यहां बड़े-बड़े नागों के सिर पर लगी मणियां अंधकार को दूर करती रहती हैं।
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पाताल में ही नाग लोकपति वासुकी आदि नाग रहते हैं। श्री शुकदेव के मतानुसार पाताल से 30,000 योजन दूर शेषजी विराजमान हैं। और शेषजी ने ही सिर पर पृथ्वी धारण कर रखी है। जब ये शेष प्रलय काल में जगत के संहार की इच्छा करते हैं, तो क्रोध से कुटिल भृकुटियों के मध्य तीन नेत्रों से युक्त 11 रुद्र त्रिशूल लिए प्रकट होते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार शेषनाग के फन (मस्तिष्क) पर पृथ्वी टिकी होने का उल्लेख भी मिलता है।
– शेष चाकल्पयद्देवमनन्तं विश्वरूपिणम् । यो धारयति भूतानि धरां चेमां सपर्वताम् ॥
– महाभारत/भीष्मपर्व 67/13
अर्थात् इन परमदेव ने विश्वरूप अनंत नामक देवस्वरूप शेषनाग को उत्पन्न किया, जो पर्वतों सहित इस सारी पृथ्वी को और भूतमात्र को धारण किए हुए हैं।