कभी भी जीवन जीना इतना कठिन नहीं होता जितना कि जीवन जीने की कला को जानना। एक बार यह समझ में आ जाए तो सब कुछ बहुत ही सहज हो जाता है। जैसे कि एक राजा बात-बात में लोगों को फांसी की सजा सुना देता था। प्रजा दु:खी रहने लगी। राजा की एक खूबी यह भी थी कि वह मरने वाले की अंतिम इच्छा जरूर पूरी करता था। एक बार उसके मंत्री से कुछ गलती हो गई। राजा ने उसे भी फांसी पर लटकाने का हुक्म दे दिया। फांसी का दिन नजदीक आ गया। फांसी वाले दिन राजा ने मंत्री से उसकी अंतिम इच्छा पूछी।
मंत्री ने कहा,‘एक वर्ष के लिए आप अपना घोड़ा मुझे दे दीजिए। मेरे पास एक ऐसी गुप्त कला है, जिसके सहारे मैं घोड़े को उडऩे की कला सिखा सकता हूं। यदि मैं मर गया तो ये गुप्त कला भी मेरे साथ चली जाएगी। राजा ने सोचा एक साल की ही तो बात है। अगर मेरा घोड़ा सचमुच उडऩे लगा तो मुझे काफी प्रसिद्धी मिलेगी। ‘अगर घोड़ा नहीं उड़ा तो एक वर्ष बाद तुम्हारी यह सजा बरकरार रहेगी।’ राजा बोला।
घर पर जब परिजनों ने पूछा कि एक वर्ष बाद क्या होगा? मंत्री बोला,‘एक वर्ष किसने देखा है। हो सकता है राजा युद्ध में लड़ते हुए मारा जाए। हो सकता है घोड़ा ही मर जाए। हो सकता है राजा ही अपना राज-पाट किसी अन्य राजा से हार जाए। इसलिए जो आज है उसमें ही जियो। वर्तमान में जीना ही जीने की कला का सबसे बड़ा रहस्य है।