देखा जाए तो जिससे हम घृणा करते हैं, उससे हम घृणा इसीलिए कर पाते हैं क्योंकि हम उसे प्रेम करते हैं, अन्यथा घृणा करना संभव न होगा।
मौन संवाद :
मौन होना सबसे बड़ी सिद्धी मानी गई है। इसलिए मौन होना सीखो। कम से कम अपने मित्रों के साथ, अपने प्रियजनों के साथ, अपने परिवार के साथ, यहां अपने सहयात्रियों के साथ, कभी कभार मौन में बैठो। बात करना बंद करो और सिर्फ बाहरी ही नहीं...भीतरी बातचीत भी बंद करो। अंतराल बनो। बस बैठ जाओ, कुछ मत करो एक-दूसरे के लिए उपस्थिति मात्र बन जाओ। शीघ्र ही तुम संवाद का नया ढंग पा लोगे।
प्रेम-घृणा :
प्रेम वहीं है जहां घृणा नहीं है और घृणा वहीं है जहां प्रेम नहीं है। जीवंत अनुभव में प्रवेश करें, तो घृणा प्रेम में बदल जाती है और प्रेम घृणा में बदल जाता है। इसलिए जिससे भी हम प्रेम करते हैं, उससे हम घृणा भी करते हैं। लेकिन शब्द में कठिनाई है। शब्द में, प्रेम में सिर्फ प्रेम आता है, घृणा छूट जाती है। अगर अनुभव में उतरें, भीतर झांक कर देखें तो जिसे हम प्रेम करते हैं, उससे ही हम घृणा भी करते हैं।