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Life: लबों को थोड़ा सीखने दो, उनको फिर हंसने दो

Published: Mar 09, 2015 03:45:00 pm

प्रारंभ में यह थोड़ा जटिल लग सकता है, यह तो तैरने की तरह है, एक बार
सीख गए तो तुम भूल नहीं सकते

खुशी, प्रसन्नता, आनंद खोजने से यह किसी को नहीं मिला। इसी खोज में कुछ गलत है, क्योंकि खोज में तुम स्वयं को भूल जाते हो, तुम दूसरी चीजों को देखने लगते हो। तुम उत्तर और पूरब और पश्चिम और दक्षिण और आकाश में और नीचे महासागरों में देखते हो और हर जगह खोजते रहते हो। यह खोज अधिक से अधिक निराशाजनक हो जाती है क्योंकि जितना तुम खोज करते हो, पाते नहीं हो तो उतनी ही भारी चिंता होने लगती है, “क्या मुझे इस समय यह मिलेगा या मैं इससे पुन: वंचित रह जाऊंगा?”

सच तो यह है कि प्रसन्नता तुम्हारी चेतना की स्वाभाविक स्थिति है जब वह जागृत होती है। अप्रसन्नता तुम्हारी चेतना की सुप्तावस्था की स्थिति है। अचेतना तुम्हारा वह दर्पण है जिसमें बड़ी धूल जमी होती है और उसके ऊपर बीते हुए समय के सामान का बोझ पड़ा होता है। प्रसन्नता तभी आती है जब बोझ हटा दिया जाता है और दर्पण को पुन: प्राप्त किया जाता है। पुन: इस दर्पण में वृक्ष, सूर्य, रेत, सागर, तारे सभी कुछ प्रतिबिंबित हो सकते हैं। जब तुम पुन: अबोध हो जाते हो, जब तुम्हारी दृष्टि पुन: एक बच्चे जैसी हो जाती है तो उस निर्मलता में तुम प्रसन्न हो जाते हो। यदि तुम किसी वस्तु को खोजो नहीं, इच्छा न करो, उसके स्वप्न न देखो, तो उस क्षण में मन मौन हो जाता है। यह स्थिर हो जाता है। कुछ समय के लिए मन अपनी अनवरत दौड़ को रोक देता है। निस्तब्धता के इन क्षणों में तुम एक अद्भुत स्थान में होते हो, जिसे पहले कभी नहीं देखा होता है। नया द्वार खुल जाता है। कुछ समय के लिए मन शांत और मौजूद होता है। प्रसन्नता अकस्मात ही तुम्हारे ऊपर उतरती है। जब इच्छाएं विदा हो जाती हैं, तो प्रसन्नता प्रकट हो जाती है।

थोड़ा साहसी बनो, अपने भीतर प्रवेश करो


प्रसन्नता वस्तुओं में नहीं है, न किसी घटना में है। प्रसन्नता चित्त की एक अवस्था है। यह मत कहो कि मुझे यह मिल जाए तो मैं खुश होऊंगा या खुश होऊंगी। खुशी ह्वदय में उपजती है और वह स्वस्थ ह्वदय का स्वभाव है। थोड़ा साहसी बनो और अपने भीतर प्रवेश करो। वहां अंधेरा होगा लेकिन उससे डरो मत, शीघ्र ही प्रसन्नता का सूरज उगेगा।

दिल खोल कर हंसो

इसी क्षण प्रसन्नचित्त हो जाओ! इसे स्थगित न करो। स्थगित करने की ये चालाकियां हैं। तुम प्रसन्न नहीं होना चाहते हो, तुम अब भी अप्रसन्न रहना चाहते हो, तुम अभी भी प्रसन्न रहने का नया बहाना चाहते हो। दिल खोलकर हंस लो! समग्रता से नृत्य करो! प्रारंभ में यह थोड़ा जटिल लग सकता है क्योंकि तुम काफी लंबे समय से हंसे नहीं हो। मगर यह आएगा… होठों को पुन: यह सीखने का थोड़ा अवसर तो दो। कोई भी व्यक्ति हंसना नहीं भूल सकता। यह तो तैरने की तरह है, एक बार सीख गए तो तुम भूल नहीं सकते।
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