मासिक दुर्गाष्टमी ज्येष्ठ माह की शुरुआत: 27 मई को 7.42 एएम से
मासिक दुर्गाष्टमी ज्येष्ठ माह का समापनः 28 मई को 9.56 एएम तक
मासिक दुर्गाष्टमीः रविवार 28 मई 2023
इस दिन महा सिद्धियोग भी बन रहा है।
1. दुर्गाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर, पूजा स्थल की साफ-सफाई और स्नान ध्यान के बाद मां दुर्गा के व्रत का संकल्प लें।
2. मां को लाल रंग की चुनरी और श्रृंगार का सामान चढ़ाएं।
3. मां दुर्गा की प्रतिमा के सामने दीप जलाकर कुमकुम, अक्षत, लाल पुष्प, मौली, लौंग, कपूर आदि अर्पित करें।
4. पान, सुपारी, इलायची, फल और मिष्ठान चढ़ाएं और माता का ध्यान करें।
5. दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
दुर्गाष्टमी व्रत की कथा
एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में दुर्गम नाम का दैत्य हुआ। वह बहुत पराक्रमी और क्रूर था। उसने तीनों लोकों में अत्याचार मचा रखा था। देवता उससे डर कर स्वर्ग छोड़कर कैलाश भाग गए थे। यहां उन्होंने भगवान शंकर और माता जगदंबा से अपने संकट को दूर करने के लिए प्रार्थना की। अंत में भगवान विष्णु, शिव और ब्रह्माजी ने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को माता दुर्गा को अपनी शक्तियां सौंपी और माता ने युद्ध के लिए दुर्गम को ललकारा और उसका अंत कर दिया। इसलिए इस दिन माता दुर्गा की पूजा की जाने लगी।
नमो नमो दुर्गे सुख करनी, नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी।
निरंकार है ज्योति तुम्हारी, तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला, नेत्र लाल भृकुटि विकराला।
रूप मातु को अधिक सुहावे, दरश करत जन अति सुख पावे॥1॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला, तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी, तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें, ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥2॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा, परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो, हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं, श्री नारायण अंग समाहीं॥3॥ क्षीरसिन्धु में करत विलासा, दयासिन्धु दीजै मन आसा।
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी, महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावती माता, भुवनेश्वरी बगला सुख दाता।
श्री भैरव तारा जग तारिणी, छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥4॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै, जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला, जाते उठत शत्रु हिय शूला।
नगरकोट में तुम्हीं विराजत, तिहुं लोक में डंका बाजत॥5॥ शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे, रक्तबीज शंखन संहारे।
महिषासुर नृप अति अभिमानी, जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा, सेन सहित तुम तिहि संहारा।
परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब, भई सहाय मातु तुम तब-तब॥6॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी, तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें, दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें।
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई, जन्ममरण ताकौ छुटि जाई॥7॥
शंकर आचारज तप कीनो, काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को, काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।
शक्ति रूप का मरम न पायो, शक्ति गई तब मन पछितायो॥8॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा, दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो, तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो।
आशा तृष्णा निपट सतावें, मोह मदादिक सब बिनशावें॥9॥
करो कृपा हे मातु दयाला, ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला॥
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं, तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै, सब सुख भोग परमपद पावै॥10॥
देवीदास शरण निज जानी। कहु कृपा जगदम्ब भवानी॥