ऐसे होगा दुखों का अंतः सद्गुरु कहते हैं कि एक बार आपने अपने और अपने शरीर के बीच, अपने और अपने मन के बीच दूरी बना ली तो यही दुखों का अंत है। जब आप इन बटोरी हुई दो चीजों यानी आपके शरीर और आपके मन और अपने बीच थोड़ी सी दूरी बना लेते हैं तो दुख नाम की कोई चीज नहीं रह जाती है।
योग का उद्देश्य ध्यानमय होना है जिसका मतलब बस इतना है कि आपने जागरूक होकर दुखों के स्त्रोत से अपनी दूरी बना ली है। जब दुख झेलने का कोई डर नहीं रह जाता केवल तब जब दुखी होने का कोई डर नहीं रह जाता है। आप अपना कदम बढ़ाएंगे और एक इंसान होने की पूरी संभावना तक पहुंचेंगें। एक इंसान होना बस जीवित बने रहने के बारे में नहीं है, इंसान होना अपनी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक सीमाओॆ से परे जाकर सबसे गहराई में उतर कर उसके मूल के बारे में जानने के बारे में है।
दूसरे जैसा बनने की कोशिश न करेंः सद्गुरु कहते हैं हर इंसान में विशेष प्रतिभा होती है, लेकिन वह दूसरों जैसा बनने में उसको नष्ट कर देता है। इंसान को अपनी मौलिकता को सुरक्षित रखना चाहिए।