बता दें कि इस मंदिर में करीब 1,32,000 करोड़ की मूल्यवान संपत्ति है। कहा जाता है कि 18वीं शताब्दी में त्रावणकोर के राजाओं ने पद्मनाम मंदिर को बनाया था। 1750 में महाराज मार्तंड वर्मा ने खुद को ‘पद्मनाभ दास’ बताया, जिसका अर्थ ‘प्रभु का दास’ होता है, इसके बाद इस शाही परिवार ने खुद को भगवान पद्मनाभ को समर्पित कर दिया और इस वजह से त्रावणकोर के राजाओं ने अपनी पूरी सम्पत्ति पद्मनाभ मंदिर को सौंप दिया।
साल 1947 तक त्रावणकोर के राजाओं ने इस राज्य में राज किया. हालांकि आजादी के बाद इसका भारत में विलय होने के बावज़ूद भी सरकार इस मंदिर को त्रावणकोर के शाही परिवार को सौंप दिया। वर्तमान में मंदिर के देख-रेख के कार्य को शाही परिवार के अधीनस्थ एक प्राइवेट ट्रस्ट संभालता है।
बाद में लोगों ने अपार संपत्तियों के चलते इस मंदिर के दरवाजों को खोलने की बात पर ज़ोर दिया जिसका सर्मथन सुप्रीम कोर्ट ने भी किया। अब तक मंदिर के छह द्वार खोले जा चुके है जिनसे करीब 1,32,000 करोड़ के सोने और जेवरात मिलें। लेकिन सातवें द्वार को अभी भी खोला नहीं गया है।
बता दें कि इस गेट में ना तो कोई वोल्ट है, और ना ही कोई कुंडी लगी है बल्कि इस गेट पर दो सांपों के प्रतिबिंब लगे हुए हैं, जो इस द्वार की रक्षा करते हैं। हैरान कर देने वाली बात तो ये है कि इस द्वार को केवल मंत्रोच्चारण से ही खोला जा सकता है।
ऐसा कहा गया है कि यदि कोई सिद्ध पुरूष गरूड़ मंत्र का स्पष्ट और सटीक उच्चारण करेगा तो ही ये द्वार खुलेगी और यदि कोई इसमें गलती की तो उसकी मृत्यू हो जाएगी। हाल ही में एक याचिकाकर्ता की संदिग्ध अवस्था में मौत हो गई।