scriptअंत:करण की शुद्धि और आध्यात्मिक जागरण का पर्व है नवरात्र | Navratri in modern context | Patrika News

अंत:करण की शुद्धि और आध्यात्मिक जागरण का पर्व है नवरात्र

Published: Sep 20, 2017 04:40:42 pm

शारदीय नवरात्र प्रारम्भ २१ सितंबर से, सनातन धर्मावलंबियों के लिए नवरात्र अंत:करण की शुद्धि का पर्व है

navratri 2017
शक्ति और भक्ति के तत्त्वों के बीच बहने वाली नदी का नाम है नवरात्र। अनीति के अंधकार पर प्रकाश का प्रहार है नवरात्र। दंभ की देह पर चेतना की चोट का नाम है नवरात्र। सत्कर्म का सत्कार और दुष्कर्म की दुत्कार का नाम है नवरात्र। सनातन धर्म में नवरात्र की प्रासंगिकता स्वयं सिद्ध है। देवी दुर्गा के जो भी नौ रूप हैं, वे उनके शक्ति वैविध्य का ही विस्तार है। सही अर्थों में नवरात्र शक्ति की पूजा का महापर्व है।
नवरात्र में प्रार्थना भी हो जाती है प्राणवंत
देवी चूंकि मां है और मां अपने बच्चों की प्रार्थना तत्काल सुन लेती हैं, इसलिए दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है। इससे अंतकरण तो शुद्ध होता ही है प्रार्थना भी प्राणवंत हो जाती है। आधुनिक व्याख्या के अनुसार शक्ति के साथ मर्यादा का अनुष्ठान और मां के सम्मान का संविधान भी है नवरात्र। यह शक्ति प्रतीक है पराक्रम का और मर्यादा पर्याय है अनुशासन का। मां प्रतीक है महिला का और सम्मान पर्याय है सशक्तिकरण का। शक्ति के प्रतीक के रूप में नवरात्र का अर्थ यह भी है कि विकारों के विनाश के लिए हम पराक्रमी बनें, किंतु दंभ और दुर्गुणों का नाश करने से प्राप्त होने वाली ख्याति से फूलकर दंभी और अहंकारी न हो जाएं।
महाकाली के रूप में मधु-कैटभ को मोहित करना (ताकि ब्रह्मजी की रक्षा के लिए भगवान विष्णु मधु-कैटभ का वध कर सकें) महालक्ष्मी के रूप में महिषासुर का वध करना, चामुंडा के रूप में शुंभ-निशुंभ को धूल चटाना और योग माया के रूप में असुरों का विनाश करना, देवी रक्तदंतिका के रूप में वह वैप्रचित्त दैत्य का दलन करना, शाकंभरी के रूप में अन्नपूर्णा होकर होकर संसार का भरण पोषण करना, देवी दुर्गा के रूप में दुर्गम दैत्य का संहार करना, देवी चंडीका के रूप में दैत्यों अर्थात चंड-मुंड को मारकर न्याय और नैतिकता का ध्वजारोहण करना। शारदीय नवरात्र में देवी दुर्गा के लिए परंपरागत नौ रूप चिन्हित किए जाते हैं और अंतिम दिन विजयादशमी अर्थात रावण पर राम की विजय के रूप में दशहरा मनाया जाता है। वासंती नवरात्र अर्थात चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्र में देवी के रूप तो यही होते हैं किंतु नवमी को मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्म के कारण रामनवमी पर्व मनाया जाता है। परंपरागत रूप में सनातन धर्मावलंबियों के लिए नवरात्र अंत:करण की शुद्धि का पर्व भी है और आध्यात्मिक जागरण का पर्व भी है।
अधिकारों के विकेंद्रीकरण का निर्देश
देवी की नौ मूर्तियां में संगठित एकता भी निहित है। जिसका प्रमाण यह है कि शुंभ-निशुंभ, चंड-मुंड, धूम्र-लोचन अर्थात विकारों का अंत करने के लिए सब संगठित होकर युद्ध करके विजय प्राप्त करती हैं। एक बात और उल्लेखनीय है कि देवी की नौ मूर्तियां अपनी 9 शक्तियों ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौसारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही, ऐंद्री, शिवदूती तथा चामुंडा में अधिकारों का पट्टा बांटती हैं। सारांश यह है कि नवरात्र में अधिकारों के विकेंद्रीकरण का परिवेश है। इस प्रकार नवरात्र महिला सशक्तिकरण का संदेश भी है और अधिकारों के विकेंद्रीकरण का निर्देश भी।
मेरी यह स्थापना है कि नवरात्र ‘टाइम मैनेजमेंट’ भी है और वर्क असाइनमेंट भी। शैलपुत्री से लेकर सिद्धिदात्री तक यानी कि देवी की इन नौ मूर्तियों में ‘ट्रांसफर ऑफ पावर’ करके दरअसल अधिकारों का विकेंद्रीकरण किया है। अशुभ का अंत करने के लिए देवी ने सारे अधिकार अपने पास केंद्रित न करके अपने अन्य रुपों में विकेंद्रित कर दिए हैं। यह मेरे मत में ‘डिवाइन डेमोक्रेसी’ अर्थात ‘दिव्य लोकतंत्र’ है। उल्लेखनीय है कि किसी भी शासन व्यवस्था या समाज में सारे संकट अधिकारों के केंद्रीकरण से ही पैदा होते हैं।
कभी भी मर्यादा न भूलने का पर्व
शक्ति के प्रतीक नवरात्र की पूर्णता के साथ या बाद चाहे शारदीय नवरात्र हो या चैत्र के नवरात्र राम का पर्व (चैत्र नवरात्र रामनवमी तथा शारदीय नवरात्र में विजया दशमी यानी दशहरा) जरूर आता है। श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। शक्ति की आराधना के पर्व नवरात्र के साथ या बाद राम के पर्व का आना इसका प्रतीक है कि शक्ति के शिखर पर पहुंच कर भी हम मर्यादा का ध्यान रखें अर्थात संयम न खोएं। इसका यह भी अर्थ है कि राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने के साथ बेशक परमाणु शक्ति का विस्तार करें लेकिन उसका दुरुपयोग न करें अर्थात अमर्यादित व्यवहार न करें।
दस मुखों की तरह हर क्षेत्र में नारी हो रही भारी
महाकाली के 10 मुखों को वर्तमान संदर्भों में देखा जाए तो नारी को ध्यान, ज्ञान, विज्ञान, चिंतन, लेखन, वाणी, सृजनात्मकता, प्रबंधन, अनुसंधान और साहस इन सभी १० क्षेत्रों में परचम फहराने की नैसॢगक शक्ति प्राप्त है। वे अपनी प्रतिभा और सामथ्र्य को सिद्ध करती ही हैं किंतु परिस्थितियों की प्रतिकूलता हो तो वे बाधाओं के लिए बाधा, चुनौतियों के लिए चुनौती और कठिनाइयों के लिए कठिनाई बनकर अपनी शक्ति को बढ़ाते हुए सकारात्मक सफलता की इबारत भी लिख देती हैं। भले ही कुछ भी हो किंतु आधुनिक क्षेत्रों में नारी तेजी से बढ़ रही है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो