scriptनीम करौली बाबा की 7 बातें, जिनके कारण लोग मानते हैं उन्हें भगवान | Neem Karoli baba inspires mark zuckerber of facebook, Steve jobs, julia roberts | Patrika News

नीम करौली बाबा की 7 बातें, जिनके कारण लोग मानते हैं उन्हें भगवान

Published: Oct 03, 2015 02:57:00 pm

फेसबुक तथा एप्पल के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, स्टीव जॉब्स को राह दिखाने
वाले नीम करौली बाबा पश्चिमी देशों में भारत का प्रतिनिधित्व
करते हैं

Neem Karoli baba

Neem Karoli baba

फेसबुक तथा एप्पल के संस्थापकों मार्क जुकरबर्ग, स्टीव जॉब्स को राह दिखाने वाले नीम करौली बाबा पश्चिमी देशों में भारत की विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके आश्रम में जहां न केवल देशवासियों को ही वरन पूरी दुनिया को प्रसन्न और खुशहाल बनने का रास्ता मिलता है वहीं दूसरी ओर प्राचीन सनातन धर्म की संस्कृति का भी प्रचार प्रसार होता है। हमेशा एक कम्बल ओढ़े रहने वाले बाबा के आर्शीवाद के लिए भारतीयों के साथ साथ बड़ी-बड़ी विदेशी हस्तियां भी उनके आश्रम पर आती हैं। पत्रिका आपके लिए लाएं हैं नीम करौली बाबा के जीवन की 10 बातें जो उन्हें अन्य भारतीय महापुरूषों के समकक्ष खड़ा करती हैं

(1) नीम करौली बाबा का जन्म उत्तरप्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर में रहने वाले एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

(2) मात्र 11 वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह एक ब्राह्मण कन्या के साथ कर दिया गया था। परन्तु शादी के कुछ समय बाद ही उन्होंने घर छोड़ दिया तथा साधु बन गए। माना जाता है कि लगभग 17 वर्ष की उम्र में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी।



(3) घर छोड़ने के लगभग 10 वर्ष बाद उनके पिता को किसी ने उनके बारे में बताया जिसके बाद उनके पिता ने उन्हें घर लौटने तथा वैवाहिक जीवन जीने का आदेश दिया। वह तुरंत ही घर लौट आए। कालान्तर में उनके दो पुत्र तथा एक पुत्री उत्पन्न हुए। गृहस्थ जीवन के दौरान वह अपने आप को सामाजिक कार्यो में व्यस्त रखते हैं।

(4) लगभग 1962 के दौरान नीम करौली बाबा ने कैंची गांव में एक चबूतरा बनवाया जहां पर उन्हें साथ साथ पहुंचे हुए संतों साधु प्रेमी बाबा तथा सोमबारी महाराज ने हवन किया।

(5) नीम करौली बाबा हनुमानजी के बहुत बड़े भक्त थे। उन्हें अपने जीवन में लगभग 108 हनुमान मंदिर बनवाए थे। वर्तमान में उनके हिंदुस्तान समेत अमरीका के टैक्सास में भी मंदिर हैं।

(6) बाबा को वर्ष 1960 के दशक में अन्तरराष्ट्रीय पहचान मिली। उस समय उनके एक अमरीकी भक्त बाबा राम दास ने एक किताब लिखी जिसमें उनका उल्लेख किया गया था। इसके बाद से पश्चिमी देशों से लोग उनके दर्शन तथा आर्शीवाद लेने के लिए आने लगे।

(7) बाबा ने अपनी समाधि के लिए वृन्दावन की पावन भूमि को चुना। उनकी मृत्यु 10 सितम्बर 1973 को हुई। उनकी याद में आश्रम में उनका मंदिर बना गाया तथा एक प्रतिमा भी स्थापित की गई।


loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो