scriptKing Dashrath Death: ‘राजा दशरथ पुत्र वियोग में मरें यही धर्म होगा।’ | Raja Dashrath Death: 'King Dashrath's son should die in separation' | Patrika News

King Dashrath Death: ‘राजा दशरथ पुत्र वियोग में मरें यही धर्म होगा।’

Published: Feb 02, 2023 05:39:07 pm

Submitted by:

Sanjana Kumar

अंतिम यात्रा पर निकलने से पूर्व मनुष्य को भौतिक साधनों का त्याग कर ही देना चाहिए। कुछ करना ही चाहती हो तो मेरे सिरहाने तुलसी का गमला रख दो। थोड़ा गंगाजल पिला दो। अब यही वास्तविक सुख है।’

raja_dashrath_death_sean.jpg

 

महारानी कौशल्या ने पुत्रवधुओं की सहायता से भूमि पर विह्वल पड़े महाराज को पुन: पलंग पर लिटाने का प्रयास किया, पर महाराज ने रोक दिया। बोले, ‘ऊंचे आसन का सुख बहुत भोग लिया कौशल्या, अब भूमि पर सो लेने दो। अंतिम यात्रा पर निकलने से पूर्व मनुष्य को भौतिक साधनों का त्याग कर ही देना चाहिए। कुछ करना ही चाहती हो तो मेरे सिरहाने तुलसी का गमला रख दो। थोड़ा गंगाजल पिला दो। अब यही वास्तविक सुख है।’

रोती स्त्रियों ने महाराज का आदेश पूरा कर दिया। उन्होंने आंखें मूंद ली। कुछ पल बाद आंखें खोलीं और कहा- ‘तुम्हें श्रवण कुमार का स्मरण है कौशल्या? उसके वृद्ध माता-पिता का वह शाप स्मरण है?’

कौशल्या के मुख पर आश्चर्य पसर गया। वे सचमुच वह पुरानी घटना भूल गई थीं। महाराज ने पुत्रवधुओं से कहा, ‘जानती हो पुत्रियों! मैंने पशु समझ कर उस निर्दोष और धर्मपरायण युवक की हत्या कर दी थी। तब उसके वृद्ध अंधे माता-पिता ने प्राण त्यागते हुए मुझे शाप दिया था कि मैं भी एक दिन अपने पुत्रों के वियोग में तड़प कर प्राण त्याग दूंगा। नियति का न्याय देखो, उनका शाप फलीभूत होने जा रहा है।’


‘नहीं पिताश्री! आपने तो भूल से उन पर प्रहार किया था। आपसे भूल हुई थी, अपराध नहीं। आपको शाप नहीं लगना चाहिए!Ó माण्डवी ने सांत्वना देने के लिए कहा।

‘यह तुम कह रही हो पुत्री? न्याय की भूमि मिथिला की बेटी ऐसा कह रही है? इसे समझाओ उर्मिला! मुझे वह शाप अवश्य ही लगना चाहिए। ईश्वर निर्बलों का एकमात्र अवलम्ब होता है, यदि अकारण ही सताए जाने पर मर्मांतक पीड़ा से तड़प उठे किसी निर्दोष की अंतिम इच्छा को वह भी न सुने तो संसार से उसके द्वारा गढ़ी गई सभ्यता का नाश हो जाएगा। उस वृद्ध दम्पति की अंतिम इच्छा पूरी होनी ही चाहिए। राजा दशरथ पुत्र वियोग में मरें यही धर्म होगा। मैं राम का पिता हूं, नियति के न्याय पर प्रश्न उठा कर उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल नहीं करूंगा। मुझे प्राण त्यागने ही होंगे।’

किसी के पास महाराज के तर्कों का उत्तर नहीं था, पर सभी उन्हें बहलाने का प्रयत्न कर रहे थे। परिवारजन होने के नाते वे यही कर भी सकते थे। महाराज ने फिर आंखें मूंद ली थीं।

शाम के समय महाराज ने आंखें खोलीं। पुत्रवधुओं को पास बुलाया और कहा, ‘तुम लोग उस मिथिला की बेटी हो जिसने युगों युगों से संसार को आध्यात्म की शिक्षा दी है। मानव जीवन के सत्य को जितना मिथिला ने समझा है, उतना कोई और न समझ सका। मेरा जाना जीवन की एक सामान्य घटना है पुत्रियों, लेकिन मेरे जाने के बाद इस परिवार और इस राष्ट्र की बागडोर तुम्हारे हाथ में है और यह तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा है। मेरा राम यहां है नहीं और वह साधु भरत अत्यंत भावुक है। मैं जानता हूं, अपनी माता के अपराध को जानने के बाद मेरा भरत अत्यंत दुखी हो जाएगा और भावुकतापूर्ण व्यवहार करता रहेगा। ऐसी दशा में तुम्हें ही इस राज्य को थामना होगा पुत्रियों! अयोध्या का भविष्य तुम्हारे ही हाथों में है।’


तीनों वधुएं हाथ जोड़ कर खड़ी थीं। पिता की हर बात चुपचाप सुन ली और शीश झुका कर स्वीकार कर लिया। दशरथ फिर बोले, ‘उर्मिला! मैं चलता हूं, मेरी अयोध्या का ध्यान रखना पुत्री। स्मरण रहे, अयोध्या की सेवा ही मेरी सेवा है।’

उर्मिला आदि की आंखें भर गई थीं। उन्होंने चुपचाप अपना हाथ पिता के चरणों पर रख दिया था। दशरथ फिर बोले- माताओं का ध्यान रखना पुत्री! उन्हें अब तुम्हारे स्नेह की आश्यकता होगी। और सुनो! उस अभागन से कहना, मैंने उसे क्षमा कर दिया है।’

कोई कुछ बोल नहीं सका। सबका गला भरा हुआ था। महाराज दशरथ ने आंखें मूंद लीं और राम राम का जप करने लगे।

रात बीत गई। महाराज पूरी रात राम राम रटते रहे थे। भोर की पहली किरण से साथ उन्होंने आंखें खोलीं, अंतिम बार कक्ष में बैठे अपनों को देखा, और आंखें मूंद लीं। उनके मुख से निकला- राम! राम! राम! इसी के साथ उनका शीश निर्बल होकर दाईं ओर लुढ़क गया।

जिससे बार बार देवता तक सहयोग मांगते थे, अपने युग का वह सर्वश्रेष्ठ योद्धा दो निर्बल अंधे बुजुर्गों के शाप के सम्मान में शीश झुका कर अपनी अंतिम यात्रा पर निकल गया था। यह भारतभूमि पर सत्ता का उच्चतम आदर्श था।


-क्रमश:

https://youtu.be/ID4Hrn_EE9M
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो