भगवान शिव के अटपटे वेश में छिपे हैं यह रहस्य, समझने पर मिलता है मोक्ष
Published: Mar 07, 2016 04:02:00 pm
सभी हिंदू देवी-देवताओं में सबसे विचित्र वेष भगवान शिव का ही बताया गया है, जानिए क्या हैं ये रहस्य
सभी हिंदू देवी-देवताओं में सबसे विचित्र वेष भगवान शिव का ही बताया गया है। आध्यात्मिक रुप से उनके इस वेष के पीछे कई रहस्य छिपे हुए हैं जिन्हें जानना जरूरी है। आइए जानते हैं क्या हैं ये रहस्य और क्यों भगवान शिव को ये सभी चीजें भाती हैं-
ललाट पर तीसरी आंख
सभी देवताओं में केवल एकमात्र भगवान शिव ही ऐसे हैं जिनकी तीन आंखें है। हिंदू धर्म में ललाट पर तीसरी आंख व्यक्ति की आध्यात्मिक गहराई को बताती है। व्यक्ति की तीसरी आंख होने का अर्थ है कि ऐसा व्यक्ति पूर्ण रूप से ईश्वरत्व को प्राप्त कर समस्त सांसारिक बंधनों से ऊपर उठ चुका है। इसी कारण से भगवान शिव को त्रिनेत्रधारी बताया गया है।
मस्तक पर चन्द्रमा
भगवान शिव ने अपने मस्तक पर चन्द्रमा धारण किया हुआ है। ज्योतिष में चन्द्रमा मन का प्रतीक है, इसे सदैव वश में रखना चाहिए। यदि यह वश में रहे तो व्यक्ति का कभी पतन नहीं होता। इसी कारण से महादेव ने चन्द्रमा रूपी मन को काबू कर अपने मस्तक पर धारण किया हुआ है।
नंदी वाहन
बैल को शक्ति तथा काम का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव ने इसी शक्तिशाली कामरूपी बैल को नियंत्रित कर अपना वाहन बनाया हुआ है ताकि वह निरंतर उनके नियंत्रण में रहते हुए सृजनात्मक लक्ष्य में जुटा रहे।
भगवान शिव के हाथ में त्रिशूल
भगवान शिव अपने हाथ में त्रिशूल धारण करते हैं। त्रिशूल के तीन सिरे संसार की तीन प्रवृत्तियां सत, रज तथा तम को बताती है। इन तीनों को वश में करने वाला ही आध्यात्मिक जगत में आगे बढ़ पाता है। महादेव ने इन तीनों ही गुणों पर पूरी तरह विजय प्राप्त कर ली है।
गले में विषधर
महादेव अपने गले में नाग धारण करते हैं। भारतीय आध्यात्म में नागों को दिव्य जीव मान कर उनकी आराधना की जाती है। भगवान भोलेनाथ के गले का नाग भी दिव्य चेतना का प्रतीक है जो न केवल सदा उनके साथ रहता है वरन उनके भक्तों को भी धर्म के मार्ग पर अग्रसर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भूत-प्रेत हैं शिव के गण
भूत-प्रेत वास्तव में सूक्ष्म शरीर अथवा आत्मारूपी शरीर का प्रतीक है। भूत-प्रेतों का सदा ही उनके समीप रहना यह बताता है कि जब व्यक्ति अपना सब-कुछ भगवान को अर्पित कर उने लिए ही कर्म करने लगता है तो उसे भगवान का सामीप्य प्राप्त हो जाता है।
इसलिए चढ़ाते हैं बिल्व पत्र
बिल्वपत्र को प्रकृति के तीन गुणों सत, रज तथा तम का सम्मिलित रूप मान कर चराचर विश्व की संज्ञा दी जाती है। इसके अलावा इसे जीवन के चार पुरुषार्थों में से तीन- धर्म, अर्थ तथा काम का भी प्रतीक माना जाता है। जब आप निस्वार्थ भाव से ये सब भगवान शिव को समर्पित कर देते हैं तो चौथा पुरुषार्थ मोक्ष स्वतः ही आपको प्राप्त हो जाता है।
क्यों चढ़ता है भांग-धतूरा
आयुर्वेद में भांग तथा धतूरे को नशीला होने के साथ अटूट एकाग्रता देने वाला भी माना गया है। एकाग्रता ही किसी भी काम का मूल होती है, यहां तक कि ध्यान और योग में भी यही काम करती है। इसी कारण भगवान शिव को भांग-धतूरा अर्पित किया जाता है जिसका अर्थ नशीला पदार्थ न होकर एकाग्रता है।