आगे की कहानी इस प्रकार है एक बार भगवान विष्णु, शिवजी का पूजन करने के लिए काशी आए। यहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हजार स्वर्ण कमल फूलों से भगवान शिव की पूजा का संकल्प लिया और उसे पूरा करने की ठानी। जला अभिषेक के बाद जब भगवान विष्णु पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक हजार में से एक कमल का फूल कम कर दिया। संकल्प के अनुसार भगवान विष्णु को अपने संकल्प की पूर्ति के लिए एक हजार कमल के फूल चढ़ाने जरुरी थे।
तब एक कमल पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा कि मेरी आंखें ही कमल के समान हैं इसलिए मुझे कमलनयन और पुण्डरीकाक्ष भी कहा जाता है। एक कमल के फूल के स्थान पर मैं अपनी आंख ही चढ़ा देता हूं। ऐसा सोचकर भगवान विष्णु जैसे ही अपनी आंख भगवान शिव को जैसे ही चढ़ाने के लिए तैयार हुए, तभी शिवजी प्रकट वहां प्रकट हुए और बोले- हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में कोई दूसरा मेरा भक्त नहीं है और ना होगा तुमने मुझे प्रसन्न कर दिया मांगो जो मांगना है और जो भक्ति तुमने दिखाई है उसके उपलक्ष में आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब से बैंकुठ चतुर्दशी के नाम से जानी जाएगी और मनाई जाएगी।
इस दिन जो व्रत रखने वाला पहले आपका और बाद में मेरा पूजन करेगा उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी और मोक्ष का भागी होगा। शंकर उनसे इतने प्रसन्न थे कि शिवजी ने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र भी वरदान के रूप में प्रदान किया और कहा कि यह चक्र राक्षसों का विनाश करने वाला होगा। तीनों लोकों में इसकी बराबरी करने वाला कोई अस्त्र नहीं होगा। तब से सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का शस्त्र है। सुदर्शन चक्र अस्त्र के रूप में प्रयोग किया जाने वाला एक चक्र, जो चलाने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुंचकर वापस आ जाता है। सुदर्शन चक्र को विष्णु ने उनके कृष्ण के अवतार में धारण किया था।