scriptस्पंदनः शब्द ब्रह्म-5 | Spandan - Shabd Brahma - 5 | Patrika News

स्पंदनः शब्द ब्रह्म-5

Published: Sep 09, 2018 03:14:29 pm

Submitted by:

Gulab Kothari

हमारी सृष्टि का कारक ब्रह्म और माया को बताया गया है। ब्रह्म निष्क्रिय रहता है, माया गतिशील एवं क्रियाशील तत्त्व का नाम है। ब्रह्म को मैटर एवं माया को एनर्जी कहना होगा तीसरा कुछ होता ही नहीं। जैसे नर और मादा।

Gulab Kothari,religion and spirituality,dharma karma,rajasthan patrika article,gulab kothari article,

Positive thinking removes stress from the person BK Geeta

जाप में हम क्या करते हैं? शब्द से वायु और अग्नि को निकालते जाते हैं। अवकाश या आकाश को घटाते जाते हैं। एक स्थिति में जब दोनों समाप्त हो जाते हैं तब बिंदु ही रह जाता है। यही सबसे बड़ा वैज्ञानिक तथ्य है। बिंदु ही आत्मभाव है। आत्मज्योति रूप है। आगे केवल भावना का धरातल रह जाता है। प्रेम और आनंद का भाव रहता है। विज्ञान भाव से व्यक्ति आनंद भाव में प्रवेश कर जाता है। यही अंतिम स्थिति है। क्योंकि जिस अव्यय पुरुष को हम आत्मा कहते हैं, उसकी पांच कलाओं—आनंद, विज्ञान, मन, प्राण और वाक् में सबसे पहले आनंद है। वहीं से सृष्टि शुरू होती है। अंत में उसी में जीव पहुंच जाता है। मन केंद्र में रहता है। जीवन काल में उसकी क्रियाएं प्राण और वाक् से जुड़ी रहती हैं। उत्तरार्ध में ऊर्ध्वमुखी होकर विज्ञान और आनंद की ओर मुड़ जाती हैं। मंत्र जप इसका सरलतम प्रयोग है। इसमें किसी प्रकार की बौद्धिक क्षमता की आवश्यकता नहीं होती। केवल मन में दृढ़ इच्छा शक्ति चाहिए।
सृष्टि का कारक
हमारी सृष्टि का कारक ब्रह्म और माया को बताया गया है। ब्रह्म निष्क्रिय रहता है, माया गतिशील एवं क्रियाशील तत्त्व का नाम है। ब्रह्म को मैटर एवं माया को एनर्जी कहना होगा तीसरा कुछ होता ही नहीं। जैसे नर और मादा। ब्रह्म के दो अर्थ कहे गए हैं। एक-जो निरन्तर फैलता रहे, उफनता रहे वह ब्रह्म है। जैसे हमारे विचार। दो-पालक-पोषक हो, धारक हो वह ब्रह्म।
सृष्टि के शुरू में जब कुछ नहीं है, केवल आकाश है, वहीं ब्रह्म का विस्तार या विवर्त होता है। विवर्त का अर्थ निरन्तर परिवर्तनशील क्रिया का नाम ही है। एक चीज नष्ट होकर दूसरी चीज में बदल जाती है। आत्मा एक शरीर को छोडक़र दूसरा शरीर धारण कर लेता है। सृष्टि में नष्ट कुछ नहीं होता। शून्य से आकाश से सारी सृष्टि का निर्माण हुआ है। अत: सब जगह उसी का अंश मौजूद है। आप किसी भी एक तत्त्व को पकडक़र गहरे में उतर जाएं तो ब्रह्म के स्वरूप तक पहुंच जाएंगे। माया की गति को पकडऩा मुश्किल काम है। कहते भी हैं कि जो समझ में नहीं आए वही माया है।
मानव बुद्धि और बल में अन्य प्राणियों से निर्बल हो सकता है, किन्तु अपने चिन्तन को मूर्तरूप देने में सक्षम है। इसीलिए उसे ईश्वर में आसानी से विश्वास नहीं होता। वह स्वयं ईश्वर बन जाना चाहता है। लेकिन उसका मन है कि उसकी सुनता ही नहीं है। वह मन के वश में जीता है। मन को ‘स्वयं’ मानकर जीता है। अत: स्वयं से परिचित नहीं हो पाता। मन ही साधन के बजाय साध्य बन जाता है। पर वह शरीर को, स्वयं को जान सकता है। ब्रह्म तक पहुंच सकता है। वह मंत्र का, ध्वनि का सहारा लेता है। ध्वनि भी वहीं से निकलती है। वहां पहुंच सकती है। शब्द रूप में नित्य हम इसका उपयोग करते हैं।
शब्द
किसी भी भाषा का आधार है—शब्द। भाषा ही आदान-प्रदान का आधार है। इसका एक ही अर्थ है—शब्द ही जीवन का आधार है। शब्द ही विचार है, विचारधारा है, संस्कृति है। हमारा दर्शन इससे भी एक कदम आगे की बात करता है। शब्द ब्रह्म है। दर्शन यह भी कहता है—‘अहं ब्रह्मास्मि।’ तो क्या शब्द हमारा पर्याय है? क्या समानता है मुझमें और शब्द में? दोनों ही ब्रह्म कैसे हैं? क्या हर भाषा का शब्द ही ब्रह्म होगा? लगता तो
यही है।
हमारा शरीर मानव निर्मित है। आत्मा का घर है। आत्मा न तो मरता है, न ही उसे पैदा किया जा सकता है। शरीर की तरह शब्द भी मानव निर्मित ही है। प्रकृति ने शब्द नहीं दिए। कोई नाम नहीं दिया। भाषा नहीं दी। अक्षर भी नहीं दिए। केवल ध्वनियां मात्र है। सृष्टि में नर और नारी रूप युगल तत्त्व हैं। अक्षरों में स्वर और व्यंजन रूप युगल तत्त्व हैं। बिना स्वर के कोई व्यंजन अक्षर नहीं बन सकता है। इनके आगे का विस्तार सृष्टि कहलाती है। अर्थ सृष्टि और वाक् सृष्टि। इनके पूर्व में जो कुछ छिपा है वह आत्मिक भाव है। ये मरता नहीं है।
हमारा पूरा शरीर अक्षरों से बना हुआ है। हर चक्र पर वर्णमाला के अक्षरों का संकेत स्पन्दन की गति को इंगित करता है। मंत्रों को अभ्यास करते-करते शरीर मंत्र बन जाता है। मंत्र ध्वनि स्वत: निकलने लगती है। मंत्र के सहारे व्यक्ति मध्यमा और परा तक की यात्रा कर लेता है। मंत्र प्रकट हो जाता है। कोई न कोई सिद्धान्त तो होना ही चाहिए जो मंत्र की ध्वनि और शरीर के स्पन्दन के बीच सेतु का कार्य करे और अन्त में दूरी को पाटकर दोनों को एकाकार कर दे।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो