scriptश्री हनुमानजी का एक ऐसा पर्व जो विशेष रूप से केवल महाकाल की नगरी में ही मनाया जाता है | Such a festival of Hanumanji which is celebrated only in city of Mahak | Patrika News

श्री हनुमानजी का एक ऐसा पर्व जो विशेष रूप से केवल महाकाल की नगरी में ही मनाया जाता है

Published: Mar 21, 2022 06:50:07 am

– महाकाल की नगरी को सुरक्षा प्रदान करने मौजूद रहते हैं 11वें रुद्रावतार श्री हनुमान- पौष मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हनुमान अष्टमी के रूप में मनाया जाता है

Hanumanji special

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महाकाल की नगरी उज्जैन में हनुमान अष्टमी का पर्व मनाने की विशिष्ट परंपरा रही है। बताया जाता है कि इस के चलते महाकाल के नगर उज्जैन की चारों दिशाओं की रक्षा करने के लिए हनुमान मंदिरों की स्थापना हुई थी। ऐसे में यूं तो आज यहां कई हनुमान मंदिर हैं, लेकिन कुछ समय पहले तक इसी कार्य के चले यहां 108 हनुमान मंदिरों की स्थापना की गई थी।

हनुमान अष्टमी के संबंध में स्कंदपुराण के अवंतिका खंड में उल्लेख भी मिलता है, इसी कारण केवल उज्जैन में ही हनुमान अष्टमी का पर्व मनाए जाने की परंपरा भी रही है।

जानकारों के अनुसार महाकाल की नगरी उज्जैन में पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी का दिन हनुमान अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इसी के चलते महाकाल की नगरी में रूद्र स्वरूप में श्री हनुमानजी भी विराजमान हैं। बताया जाता है कि मलमास के साथ यह मास धनु संक्रांति का भी माना गया है, साथ ही इस पूरे माह सूर्य की साधना का भी विशेष महत्व माना गया है।

इसी माह में हनुमान अष्टमी भी आती है। महाकाल की नगरी उज्जैन में 108 हनुमान यात्रा का विधान है, जिसे शक्ति का अंश मानकर किया जाता है। माना जाता है कि इसे करने से मानसिक, शारीरिक कष्ट दूर होते हैं। वहीं इसी माह में ऋतु के परिवर्तन की बात भी कही गई है। मान्यताओं के अनुसार इस माह में सूर्य और हनुमानजी की आराधना करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है। श्री हनुमानजी की चैतन्य मूर्तियों के यूं तो अवंतिका में अनेक स्थान हैं। इनमें हनुमंतकेश्वर 84 महादेवों में शामिल माने जाते हैं।

अष्टधातु की अतिप्राचीन पंचमुखी हनुमान प्रतिमा
धर्म के जानकारों व पंडितों के अनुसार बड़े गणेश मंदिर में अष्टधातु की अतिप्राचीन पंचमुखी हनुमान प्रतिमा है। कहा जाता है कि एक संत जो कि हनुमानजी के परम भक्त थे, बड़े गणेश मंदिर में रहकर एकांत में तांत्रिक साधना किया करते थे। जब उनके दिव्य लोक जाने का समय हुआ तो वह यह मूर्ति ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास दादाजी को सौंप गए।

उन संत के पास यह प्रतिमा कब से थी या वे इसे कहां से लाए थे, यह संबंध में कोई जानकारी नहीं है। बताया जाता है संत ने मूर्ति सौंपते समय यह भी कहा था कि कोई भी इस प्रतिमा का स्पर्श नहीं करे। इसीलिए मंदिर ऐसा बनाया गया कि चारों तरफ जालियों वाले दरवाजे हैं, ताकि भक्त दर्शन तो कर सकें, लेकिन मूर्ति को स्पर्श न कर सकें। हनुमान अष्टमी पर यहां भी श्री हनुमान जी का अभिषेक-पूजन और शृंगार किया जाएगा। इसके साथ ही आरती के पश्चात यहां भी प्रसाद बांटा जाता है।

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