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जब विवेकानंद ने कहा था, मुझे हिंदू होने पर गर्व है

Published: Jan 12, 2017 09:50:00 am

विवेकानन्द की दृष्टि में धर्म योग है। ये वैयक्तिक परिवर्तन, समायोजन और समन्वय का नाम है

swami vivekananda

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स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे कि मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से संबंधित हूं जिसने संसार को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता दोनों सिखाई हैं। ऐसी सर्वोपरि आत्म-निरीक्षण और आध्यात्मिकता की धरती-यह केवल भारत है। एकात्म दर्शन की बात करते हुए वे कहते हैं कि विश्व के सभी धर्मों का लक्ष्य एक ही है-परमात्मा की प्राप्ति। तो फिर आपसी वैमनस्य क्यों है? विश्व बंधुत्व के लिए ऐसे ही विश्वधर्म की आवश्यकता है जो मानवीय प्रेम पर आधारित हो। स्वामीजी कहते थे कि हम हिंदू लोग केवल सहिष्णु ही नहीं हैं, हम प्रत्येक धर्म में स्वयं को एकाकार कर देते हैं। हम धर्म निरपेक्ष इस अर्थ में नहीं हैं कि हम धर्म के प्रति उदासीन हैं, वरन् इसलिए कि हम सब धर्मों को पवित्र मानते हैं।

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मोक्ष का माध्यम है मनुष्य सेवा

विवेकानन्द की दृष्टि में धर्म योग है। ये वैयक्तिक परिवर्तन, समायोजन और समन्वय का नाम है। किसी सिद्धान्त को मानना धर्म नहीं है। धर्म अपनी प्रकृति का पुनर्निर्माण है। सर्म बौद्धिक कट्टरता नहीं आध्यात्मिक जीवन का मनुष्य के अंदर उदय होना धर्म है। अपने एक शिष्य को प्रेषित पत्र में उन्होंने लिखा था-‘मेरे बच्चों, धर्म का रहस्य सिद्धान्तों में नहीं, बल्कि व्यवहार में है। अच्छा बनना और अच्छा कार्य करना यही धर्म की समग्रता है।’

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उन्होंने कर्म की उपासना को ही सदैव महत्त्व दिया। वे संन्यासी बनकर जंगलों में भटकने की बजाय समाज और राष्ट्र की सेवा को ही जीवनधर्म मानते थे। उन्होंने मनुष्य की सेवा के जरिए ही मोक्ष प्राप्त करने का संदेश दिया। विवेकानन्द कहते थे कि तुम आस-पड़ोस के सैकड़ों गरीब और बेसहारा लोगों की यथा-साध्य सेवा करो। जो भूखे हैं उन्हें भोजन कराओ, जो रोगी हैं उन्हें औषधि दो, जो निरक्षर हैं उन्हें पढ़ाओ। मैं समझता हूं इतना सब करने पर तुम्हारे मन को अवश्य शांति मिलेगी। उन्होंने कहा कि गरीब को संपन्न, मूर्ख को बुद्धिमान, चांडाल को अपने जैसा बनाना ही भगवान की पूजा है। इससे ही राष्ट्र-निर्माण और भारत पुनरोत्थान होगा। हमारा एकमात्र जाग्रत देवता मनुष्य है।

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स्वामीजी युवाशक्ति में अटूट विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि भारत में परिवर्तन का प्रमुख कारक युवा ही बनेगा। स्वामी विवेकानन्द के कार्यों को आगे बढ़ाने का उत्तरदायित्व आज की युवा पीढ़ी पर ही है। उसे स्वामीजी के आह्वान को अपना संकल्प बना लेना चाहिए -‘मेरा विश्वास युवा पीढ़ी में है, वे एक दिन सिंह की भांति समस्त समस्या का हल निकालेंगे।’

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