धर्म और अध्यात्म

जिंदगी में प्रेम को उतारो, दुनिया बदल जाएगी

प्रेम के प्रवाह से जड
चेतन में, अंधकार प्रकाश में,दुख आनंद में, कोलाहल
शांति में और मृत्यु अमरत्व में रूपांतरित होने लगते हैं

May 24, 2015 / 01:38 pm

सुनील शर्मा

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जीवन में प्रेम हो तो घोर निराशाओं में भी हममें आशा का संचार हो सकता है। प्रेम के प्रवाह से जड चेतन में, अंधकार प्रकाश में, मिथ्या सत्य में, दुख आनंद में, भेद अभेद में, कोलाहल शांति में और मृत्यु अमरत्व में रूपांतरित होने लगते हैं। प्रेम में यह अनुभूति होने लगती है कि तुच्छ महान में और सूक्ष्म विराट रूप में बदल गया है। जैसे ही तुम प्रेम की गहराई में डूबते हो, वैसे ही तुम्हारे भीतर कुछ नया होने लगता है और कुछ दिव्य बनने लगता है।

प्रेम के स्पर्श से ही ह्वदय में श्रेष्ठ भावनाएं उमड़ने लगती हैं। प्रेम के प्रभाव से मनुष्य के सद्गुण जगने लगते हैं, मन में प्रसन्नता का संचार होने लगता है। जैसे ही ये परिवर्तन होते हैं, हमारी सारी दिनचर्या ही बदल जाती है। अपने बारे में हम यह भ्रांत धारणा बना लेते हैं कि हम दूसरों से प्रेम करते हैं और खुद से भी। हम स्वयं से प्रेम करें पर उसमें हम स्वार्थ से ज्यादा परमार्थ की सोचें तो इसके लिए जरूरी है कि सत्य हमारे जीवन और आचरण में उतरे। इतिहास साक्षी है, जिस किसी ने भी सत्य और प्रेम को जीवन में उतारा है और आचरण में ढाला है, वे अपने किसी भी उद्देश्य में असफल नहीं हुए हैं।

सत्य को बनाओ साथी

जीवन भर सत्य और अहिंसा व्रत का पालन करने वालों के प्रति लोग वैर भाव छोड़ देते हैं। लेकिन सत्य बोलना, सत्य का आचरण करना और प्रत्येक कार्य सत्य की कसौटी पर कसने के बाद करना, ये तीनों बातें भिन्न हैं। सच बोलना आसान है। अनेक लोग प्रतिदिन सच बोलते हैं किंतु कई बार उनका आचरण सत्य से भिन्न होता है। इस कारण उन्हें जीवन में न तो कोई फल मिलता है और न ही उनके सत्य का चमत्कार दिखाई देता है। यदि मन, वचन तथा स्वभाव में हमेशा अंतर रहेगा तो कोई सार्थक फल नहीं मिलता। सत्य का दर्जा किसी दैवीय संपदा और ईश्वर की अनुभूति से कम नहीं है।

जिनके मन में यह विश्वास होता है कि उनका सत्य अटल है, उनके जीवन में सत्य फलदायी होता है। व्यक्तित्व के विकास के लिए मन, वाणी और कर्म की एकता साधनी चाहिए। मन, वाणी और कर्म की एकता में लोभ और अहंकार जैसी बातें बहुत बाधाएं डालती हैं। इससे हमारे व्यक्तित्व का उचित विकास नहीं हो पाता है। सत्य को वाणी का तप कहा गया है। जो लोग मन, वाणी और कर्म की अभेदता साध लेते हैं, उन्हें सत्य का साक्षात्कार अवश्य होता है। सत्य ही मनुष्य में आत्मविश्वास बढ़ाता है।

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