अश्विनी ‘क्षिप्र व तिङ्र्यंमुख’ संज्ञक नक्षत्र अंतरात्रि अगले दिन सूर्योदय पूर्व प्रात: ५.०४ तक, इसके बाद भरणी ‘उग्र व अधोमुख’ संज्ञक नक्षत्र है। अश्विनी में यथा आवश्यक यात्रा, विद्या, चित्रकारी वस्त्र व विवाहांग तथा अन्य मांगलिक कार्यादि करने योग्य हैं। अश्विनी गंडांत मूल संज्ञक नक्षत्र भी है।
विशिष्ट योग: सर्वार्थसिद्धि नामक शुभयोग तथा दोष समूह नाशक रवियोग नामक शक्तिशाली शुभ योग सूर्योदय से अंतरात्रि सूर्योदय पूर्व प्रात: ५.०४ बजे तक, फिर सूर्योदय तक राजयोग नामक शुभ योग है। शुभ वि.सं. : २०७४, संवत्सर: साधारण, अयन: दक्षिणायन, शाके: १९३९, हिजरी: १४३८, मु.मास: जिल्काद-२०, ऋतु: वर्षा, मास: भाद्रपद, पक्ष: कृष्ण।
भद्रा: रात्रि ९.३२ से भद्रा प्रारंभ। भद्रा का वास स्वर्गलोक में होने से शुभ है। वारकृत्य कार्य : रविवार को सभी स्थिर संज्ञक कार्य, राज्याभिषेक, ललित कला सीखना, राज्य सेवा, पशु क्रय, औषध निर्माण, धातु कार्य, यज्ञादि-मंत्रोपदेश आदि कार्य शुभ माने गए हैं।
दिशाशूल : रविवार को पश्चिम दिशा की यात्रा में दिशाशूल रहता है। चन्द्र स्थिति के अनुसार आज पूर्व दिशा की यात्रा लाभदायक व शुभप्रद है। श्रेष्ठ चौघडि़ए आज प्रात: ७.३९ से दोपहर १२.३२ तक क्रमश: चर, लाभ व अमृत तथा दोपहर बाद २.०९ से अपराह्न ३.४७ तक शुभ के श्रेष्ठ चौघडि़ए हैं एवं दोपहर १२.०५ से १२.५७ तक अभिजित नामक श्रेष्ठ मुहूर्त है, जो आवश्यक शुभकार्यारम्भ के लिए अत्युत्तम हैं। यह समय किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने के लिए बेहद सर्वोत्तम है।
राहुकाल सायं ४.३० बजे से सायं ६.०० बजे तक राहुकाल वेला में शुभ कार्यारंभ यथासंभव वर्जित रखना हितकर है। इस समय भूल से भी कोई शुभ कार्य न करें अन्यथा हानि होने की पूरी संभावना है।