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मृतसंजीवनी मंत्र: जिसके प्रयोग मात्र से जीवित हो उठता है मृत जीव!

Published: Nov 06, 2022 03:24:46 pm

– इस मंत्र के उच्चारण से इतनी अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिसे संभालना किसी आम मनुष्य के बस की बात नहीं…

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सनातन परंपरा में मंत्रों, तंत्रों व यंत्रों का विशेष महत्व है। ऐसे में मंत्रों को सबसे प्रमुख माना जाता है। हिंदू धर्म के प्रमुख मंत्रों में भगवान शिव का “महामृत्युञ्जय मंत्र” और वेदमाता गायत्री का “श्री गायत्री मंत्र” भी आते हैं। यहां ये जान लें कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद गीता में कहा है कि “मंत्रों में मैं गायत्री हूं”। मान्यता के अनुसार इन दोनों मंत्रों में से किसी भी एक का 12,50,000 बार जाप करके बड़ी से बड़ी मनोकामना के पूर्ण किया जा सकता है।

ऐसे में भगवान शिव ने महामृत्युञ्जय मंत्र व गायत्री मंत्र को मिलाकर एक और अद्भुत और महाशक्तिशाली मंत्र की रचना की थी। उस मंत्र को “महामृत्युञ्जयगायत्री मंत्र” कहा गया और इसे ही आम भाषा में “मृतसंजीवनी मंत्र” के नाम से जाना जाता है। मान्यता के अनुसार इस मंत्र मंत्र इतनी शक्ति है कि इसकी मदद से मृत व्यक्ति को भी जीवित किया जा सकता था।

ये मंत्र अत्यंत संवेदनशील माना गया है और हमारे ऋषि-मुनियों ने इसके उपयोग को स्पष्ट रूप से निषिद्ध भी किया है। अगर योग्य गुरु का मार्गदर्शन ना मिले तो इस मंत्र का उच्चारण कभी भी 108 बार से अधिक नहीं करना चाहिए, अन्यथा उसके विपरीत परिणाम भी हो सकते हैं।

महामृत्युञ्जयगायत्री या मृतसंजीवनी मंत्र इस प्रकार है:

ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्रयंबकंयजामहे
ॐ तत्सर्वितुर्वरेण्यं ॐ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम
ॐ भर्गोदेवस्य धीमहि ॐ उर्वारूकमिव बंधनान
ॐ धियो योन: प्रचोदयात ॐ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात
ॐ स्व: ॐ भुव: ॐ भू: ॐ स: ॐ जूं ॐ हौं ॐ

इस महान मृतसंजीवनी मंत्र का ज्ञान सर्वप्रथम भगवान शिव ने दैत्यों के गुरु भृगुपुत्र शुक्राचार्य को उनकी घोर तपस्या के बाद वरदान स्वरुप दिया था। इस मंत्र के प्रभाव से शुक्राचार्य देव-दानवों के युद्ध में मरे हुए दैत्यों को पुनः जीवित कर देते थे। दैत्य पहले से ही जहां बल में देवताओं से अधिक ही थे और फिर उनके ऐसा करने से दैत्यों का पलड़ा और भारी हो गया और उन्होंने देवताओं को स्वर्ग से निष्काषित कर दिया।

ऐसा कई बार हुआ कि शुक्राचार्य ने केवल इसी महान मंत्र से दैत्यों को हारा हुआ युद्ध जितवा दिया। जब महादेव ने देखा कि शुक्राचार्य उनकी दी हुई विद्या का गलत उपयोग कर रहे हैं, तो क्रोध में आकर उन्होंने शुक्राचार्य को निगल लिया। बाद में शुक्राचार्य को भगवान शिव ने जब बाहर निकाला जिससे उनका नाम शुक्राचार्य पड़ा।

इसके बाद देवगुरु बृहस्पति ने भी इसकी काट ढूंढने की सोची। उन्होंने अपने पुत्र कच को शिष्य बना कर शुक्राचार्य के पास भेजा, ताकि वो भी उनसे मृतसंजीवनी मंत्र का ज्ञान प्राप्त कर सकें। शुक्राचार्य के आश्रम में उनकी पुत्री देवयानी कच से प्रेम कर बैठी। ये जानकर कि कच संजीवनी विद्या सीखने आए हैं और देवयानी उससे प्रेम करती है, दैत्यों ने कई बार उसका वध कर दिया किन्तु देवयानी की प्रार्थना पर शुक्राचार्य ने मृतसंजीवनी मंत्र के प्रयोग से उसे हर बार जीवित कर दिया। अंत में दैत्यों से कच को मार कर उसे जला दिया और उसके भस्म को मदिरा में मिला कर शुक्राचार्य को ही पिला दिया। उसके बाद वे निश्चिन्त हो गए कि अब शुक्राचार्य कच को जीवित नहीं कर पाएंगे अन्यथा उनका भी अंत हो जाएगा।

जब शुक्राचार्य ने कच को नहीं देखा और मृतसञ्जीवनी मंत्र का प्रयोग किया तो कच उनके उदर में जीवित हो उठा। उसने शुक्राचार्य से कहा कि अब यदि वो बाहर आया तो उनकी मृत्यु हो जाएगी।

शुक्राचार्य को दैत्यों पर बड़ा क्रोध आया और उन्होंने उन्हें अपना साम्राज्य खोने का श्राप दे दिया। किन्तु अपनी पुत्री का दुःख देख कर शुक्राचार्य ने कच से कहा कि वो उसे मृतसञ्जीवनी विद्या का ज्ञान देते हैं और जब वो बाहर आये तो उसी विद्या से उन्हें जीवित कर दे।

इस प्रकार कच ने वो ज्ञान शुक्राचार्य के उदर में ही सीखा। जब वो शुक्राचार्य का उदर चीर कर बाहर आया तो उनकी मृत्यु हो गयी किन्तु फिर कच ने उसी महान मंत्र का उपयोग कर उन्हें जीवित कर दिया। जब देवयानी ने उसे बताया कि वो उससे प्रेम करती है तो कच ने ये कहकर उससे विवाह करने से मना कर दिया कि वो उसके गुरु की पुत्री है। इससे रुष्ट होकर देवयानी ने उसे श्राप दिया कि जिस मृतसंजीवनी विद्या के लिए वो यहां आया था वो उसके किसी काम नहीं आएगी। तब कच ने भी देवयानी को श्राप दिया कि उसका विवाह उससे नीचे कुल में होगा। इसी कारण देवयानी का विवाह क्षत्रिय कुल के महाराज ययाति से हुआ।

मृतसंजीवनी मंत्र का प्रभाव अद्भुत है। ऐसी मान्यता है कि इस मंत्र में हिन्दू धर्म के सभी ३३ कोटि देवताओं (8 वसु, 11 रूद्र, 12 आदित्य, 1 प्रजापति और 1 वषट) की शक्तियां सम्मलित होती है। इस मंत्र के उच्चारण से इतनी अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिसे संभालना किसी आम मनुष्य के बस की बात नहीं होती है। यही कारण है कि विद्वानों ने बिना किसी योग्य गुरु के इस मंत्र के जाप करने के लिए मना किया है। इस मंत्र के जाप से पूर्व कुछ बातें याद रखनी आवश्यक मानी गईं हैं:
: बिना गुरु के मार्गदर्शन के इस मंत्र का जाप ना करें।
: अगर बिना गुरु के इस मंत्र का जाप करना हो तो 108 जाप से अधिक ना करें।
: जाप पूर्व दिशा की ओर मुख करके करें।
: जाप के लिए शांत स्थान का चुनाव करें। अकेले कमरे में भी कर सकते हैं अथवा ऐसे किसी मंदिर में जहां लोगों का आवागमन अधिक ना हो।
: मंत्रों का उच्चारण अत्यंत शुद्ध हो और मंत्र की आवाज बाहर ना आ रही हो।
: मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से ही करना चाहिए।
: जाप के दौरान सात्विक जीवन जियें और मांसाहार, मदिरापान और सम्भोग से बचें।

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