इस बात से ना तो कोई इनकार कर सकता है और ना ही इसे नजरअंदाज किया जा सकता है कि जिस पौराणिक इतिहास की हम यहां बात कर रहे हैं वह अनादि विष्णु भगवान की ही है। भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर एक और जहां अपने भक्त प्रहलाद को बचाया था वहीं क्रूर हिरण्यकश्यपु से प्रजा को मुक्ति दिलाई थी। उन्होंने ही महाबलि और मायावी राजा बलि से देवताओं की रक्षा की थी। इसी तरह श्रीहरि विष्णु ने कुछ ऐसे कार्य किए थे जिनको जनकल्याण के लिए किया गया छल कहा गया। हालांकि जगतकल्याण के लिए यह भेद नीति थी, छल नहीं। यदि वे ऐसा नहीं करते तो कई देवी और देवताओं से आज हम वंचित होते।
एक बार भस्मासुर के कारण भगवान शंकर का जीवन संकट में आ गया था। भस्म करने का वरदान प्राप्त करने के कारण उसका नाम भस्मासुर पड़ गया। भस्मासुर महापापी असुरों में से एक था। उसने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए भगवान शंकर की घोर तपस्या की और उनसे अमर होने का वरदान मांग लिया, लेकिन भगवान शंकर ने कहा कि तुम कुछ और मांग लो तब भस्मासुर ने वरदान मांगा कि मैं जिसके भी सिर पर हाथ रखूं वह भस्म हो जाए। भगवान शंकर ने वरदान दे दिया।
भस्मासुर ने इस वरदान के मिलते ही कहा, क्यों न इस वरदान की शक्ति को अभी परख लिया जाए। वह तुरंत शिवजी के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा। शंकर जी वहां से भागे और विष्णुजी की शरण में जा खड़े हुए। तब विष्णुजी ने एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर भस्मासुर को आकर्षित करने की योजना बनाई। भस्मासुर उस स्त्री को देखकर मोहित हो गया। शिव को भूलकर उस सुंदर स्त्री के मोहपाश में फंस गया। मोहिनी स्त्रीरूपी विष्णु ने भस्मासुर को खुद के साथ नृत्य करने के लिए प्रेरित करने लगे। मोह का फंदा भस्मासुर पर ऐसा पड़ा की वह तुरंत ही नृत्य करने के लिए मान गया।
इधर नृत्य करते समय भस्मासुर मोहिनी को देखकर उसकी तरह नृत्य करने लगा और यही देखकर मौका मिलते ही विष्णुजी ने अपने सिर पर हाथ रख दिया। शक्ति और काम के नशे में चूर भस्मासुर ने जिसकी नकल की और भस्मासुर अपने ही प्राप्त वरदान से भस्म हो गया।
ऐसा माना जाता है जब भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शंकर वहां से भागकर एक पहाड़ी के पास रुके और फिर उन्होंने इस पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे उसी गुफा में छिप गए। माना जाता है कि वह जिस गुफा में छिपे थे वो जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकुटा की पहाड़ियों पर है। कहते हैं इन खूबसूरत पहाड़ियों को देखने से ही मन शांत, आनंदमई हो जाता है। इस गुफा में हर दिन सैकड़ों की तादाद में शिवभक्त शिव की आराधना करने आते हैं।
ऐसा माना जाता है जब भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शंकर वहां से भागकर एक पहाड़ी के पास रुके और फिर उन्होंने इस पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे उसी गुफा में छिप गए। माना जाता है कि वह जिस गुफा में छिपे थे वो जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकुटा की पहाड़ियों पर है। कहते हैं इन खूबसूरत पहाड़ियों को देखने से ही मन शांत, आनंदमई हो जाता है। इस गुफा में हर दिन सैकड़ों की तादाद में शिवभक्त शिव की आराधना करने आते हैं।