इस कदंब के पेड़ पर साक्षात भगवान कृष्ण वास करते हैं, जो भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं…
जयुपर। श्रद्धा में अटूट शक्ति होती है। यदि आप सच्चे मन से दुआ मांगते हैं, तो वह जरूर कुबूल होती है। कहते हैं ना कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। लेकिन हम यहां जिस जगह व भगवान की बात कर रहे हैं, वहां न देर है ना ही अंधेर। यहां बारह महीने श्रद्धालुओं का मेला लगा रहता है। इसके पीछे वजह साफ है कि यहां जो भी भक्त शादी की मुराद लेकर आता है, उसकी एक साल के भीतर शादी हो जाती है। यह पावन जगह है गुरुओं की धरती कपालमोचन। यहां लड़का-लड़की का रिश्ता कोई ओर नहीं, बल्कि खुद भगवान श्री कृष्ण करवाते हैं। मेले में आने वाले श्रद्घालु कृष्ण जी के प्रिय वृक्ष कदंब से मन्नत मांगने आते हैं। चमत्कार देखिए कि एक साल के भीतर ही शादी के लिए मांगी गई मुराद पूरी भी हो जाती है। कपालमोचन की धरती पर सिर्फ रिश्ते ही नहीं बनते, बल्कि सूनी गोद भी भरती है
यमुनानगर के मेला कपाल मोचन में सूरजकुंड सरोवर के पास स्थित कदंब के इस पेड़ के चारों तरफ घूम घूम कर महिलाएं और पुरुष सूत का धागा बांधते हैं और पूरी श्रृद्धा एंव आस्था के साथ पूजा अर्चना करते हैं। इसके बाद स्नान कर सरोवर के किनारे दीप जलाकर अपने बच्चों के लिए अच्छा रिश्ता या फिर अपने लिए संतान मांगते हैं। आप सोच रहे होंगे कि आखिर इस पेड़ में ऐसा है क्या है, जो लोगों को अपनी तरफ खींच लाता है। श्रद्धालुओं की मानें, तो प्राचीन काल में भगवान श्री कष्ण इसी पेड़ पर बैठ कर बांसुरी बजाते थे और यह पेड़ अब अमर हो चुका है।
मान्यता है कि कदंब के इस पेड़ पर धागा बांधने से हर मुराद पूरी होती है। यही वजह है कि जिस लड़के या लड़की की शादी नहीं होती उनके परिजन यहां आकर मन्नत मांगते हैं। मान्यता है कि एक साल के भीतर ही मन्नत पूरी भी हो जाती है। मन्नत पूरी होने पर लोग कदंब पेड़ के साथ मंदिर में कष्ण जी की प्रतिमा पर सेहरा बांधते हैं और बांधे गए सूत की गांठ खोल देते हैं।
इतिहास के पन्नों पर नजर डालें, तो कहीं यह भी लिखा हुआ मिल जाता है कि इसी कदंब के पेड़ के नीचे पांडवों के जन्म से पूर्व कुंती ने सूर्य देव से पुत्र कर्ण की प्राप्ति के लिए कठोर तप किया था। इसी तप से उन्हें कर्ण की प्राप्ति हुई थी। तभी से मेले में आने वाले श्रद्धालु यहां आकर पुत्र प्राप्ति की कामना करते हैं। माना जाता है कि कदंब के पेड़ पर लगने वाले फल को यदि विवाहिता की गोद में डाला जाए, तो उसकी गोद भर जाती है। पेड़ के चारों ओर धागा बांधा जाता है। जब पुत्र की प्राप्ति हो जाती है, तो लोग इस धागे को खोलने के लिए यहां जरूर आते हैं। यही वजह है कि सूरजकुंड सरोवर के पास सिर्फ सूत व प्रसाद बेचने वालों की ही दुकानें लगती हैं।